तत्त्व चिंतामणि -भाग 2 | Tattav Chintamani Part II

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Tattav Chintamani Part II by श्री जयदयालजी गोयन्दका - Shri Jaydayal Ji Goyandka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मलुष्यका कतंव्य १३ मिल सकता | ऐसे मनुष्य-जीवनका समय निद्रा आर्स्यः प्रमाद और अकर्मण्यतामे व्यर्थं कदापि नही खोना चाहिये | जो मनुष्य अपने इस अमूल्य समयको बिना सोचै-विचारे वितावेगा, उसे आगे चलकर अवश्य হী पछताना पडेगा । कविने क्या ही सुन्दर कहा है-- विना बिचारे जो करे सो पाछे पछिताय । काम बिगारे आपनो जगमें होत हँसाय ॥ जगमें होत हँसाय चित्तमें चैन न पावै । खान पान सनमान राग रँग मन नहिं भावे ॥ कह गिरिधर कविराय कर्म गति टरत न टारे। खटकत है जिय माँहि करे जो विना विचारे ॥ अत. अपनी बुद्धिके अनुसार मनुष्यकी अपना समय बडी ही सावधानीसे ऊँचे-से-ऊँचे काममे लगाना चाहिये, जिससे आगे चलकर पश्चात्ताप न करना पड़े । नहीं तो गोस्वामीजीके शब्दोमिं-- सो पर दुख पावदही सिर धुनि धुनि पछिताई । कालि कर्महि $खरहि मिथ्या दोष रूगाइ ॥ परतानेके अन्य कोई उपाय न रह সহ भनुष्यजीवन बहुत ही महँगे मोलसे मिला है। काम बहुत करने हैं, समय बहुत थोडा है, अतएव -सिवा जायगा | य




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