तत्त्व चिंतामणि -भाग 2 | Tattav Chintamani Part II
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
852
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री जयदयालजी गोयन्दका - Shri Jaydayal Ji Goyandka
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मलुष्यका कतंव्य १३
मिल सकता | ऐसे मनुष्य-जीवनका समय निद्रा
आर्स्यः प्रमाद और अकर्मण्यतामे व्यर्थं कदापि नही
खोना चाहिये | जो मनुष्य अपने इस अमूल्य समयको
बिना सोचै-विचारे वितावेगा, उसे आगे चलकर
अवश्य হী पछताना पडेगा । कविने क्या ही सुन्दर
कहा है--
विना बिचारे जो करे सो पाछे पछिताय ।
काम बिगारे आपनो जगमें होत हँसाय ॥
जगमें होत हँसाय चित्तमें चैन न पावै ।
खान पान सनमान राग रँग मन नहिं भावे ॥
कह गिरिधर कविराय कर्म गति टरत न टारे।
खटकत है जिय माँहि करे जो विना विचारे ॥
अत. अपनी बुद्धिके अनुसार मनुष्यकी अपना
समय बडी ही सावधानीसे ऊँचे-से-ऊँचे काममे लगाना
चाहिये, जिससे आगे चलकर पश्चात्ताप न करना पड़े ।
नहीं तो गोस्वामीजीके शब्दोमिं--
सो पर दुख पावदही सिर धुनि धुनि पछिताई ।
कालि कर्महि $खरहि मिथ्या दोष रूगाइ ॥
परतानेके अन्य कोई उपाय न रह
সহ भनुष्यजीवन बहुत ही महँगे मोलसे मिला
है। काम बहुत करने हैं, समय बहुत थोडा है, अतएव
-सिवा
जायगा | य
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