इन्द्रियज्ञान -ज्ञान नही है | Indriyagyan -Gyan Nahi Hai

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Indriyagyan -Gyan Nahi Hai  by नीलम जैन -Neelam Jainसंध्या जैन -Sandhya Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चअ) ७: (द गै ০2 পর नि च 1 + ः ৮228 ५ ‡ ध ५ नश). ৮১ ~ 0 1 ২৯ ५ (५ ५/८ ५... त है! ২ लक्ष नीं हे उसका प्रतिभास होने पर भी वह वास्तव मे जानने में नहीं ८ आता हे। जानने मे आने पर भी जानता नहीं है क्योंकि लक्ष वहाँ नहीं 2280 हे---इस प्रकार सम्यकज्ञान का लक्षण हर हालत मे परद्रव्य से पराट्‌.मुख ह ओर स्वद्रव्यस्वरूप जायक आत्मा के सन्मुख ही रहने का है। ॐ > इस प्रकार आप श्री ने सम्यकृञ्ञान का यथार्थं स्वरूप दर्शकर भव्य ^ (५ जीवो पर अनन्त-अनन्त उपकार किया हे। ৮ > #) 6 श्री कुंदकुंददेव के तुम्हीं सुभक्त, ৮ श्री अमृतदेव के तुम्हीं सुमित्र, ८2, श्री कहान गुरुदेव के तुम्ही सुपुत्र, ५.4. शुद्रातम जाननहार लाख-लाख तुम्ड प्रणाम ।। ৫ ` \ पू. गुरुदेव श्री के शासनकाल में आप श्री द्वारा জাল ক হন জী ডি? , अत्यन्तस्पष्टता, दुढ़ता और निशंकता की पराकाष्टा देखकर--हमारा ४. ¢ मस्तक शुक जाता हे। आपकी महिमा अपरम्पार हे। आपका द्रव्य रु 1६ अलौकिक है, त्रिकाल मंगल है, परमहितकारी हे। आपकी ४४ अध्यात्मरसमयी मुद्रा, वाणी तथा जीवन भव्यों को आत्मदर्शन की प्रबल &+* ট प्रेरणा प्रदान करता रहता है। सूर এ आप श्री का अतिशय आमार मानते हुये हृदय में सहज उदगार आते $+# 23 हैं कि हे प्रभु! आप श्री ने तो... पा पु “में ज्ञायक परज्ञेय हैं मेरे--ऐसी प्रांति मिटा डाली। ५ রঃ ज्ञायक का ज्ञायक रहने की, अपूर्व विधि बता डाली।। प 0 त (कि द्रव्यदृष्टि का दान दिया, हम सुखी रहें वरदान दिया। है + १ सच्चे किया + है... हो सच्चे अनुपम दानवीर, हम भाव आपका सफल किया।। “५ (५ व ¢ চি ভিজ




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