हिंदी एवं मराठी के वैष्णव साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन | Hindi Evam Marathi Ke Vaishnav Santh Sahitya Ka Tulnatmak Adhyayan

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Hindi Evam Marathi Ke Vaishnav Santh Sahitya Ka Tulnatmak Adhyayan by डॉ. नरहरि चिंतामणि जोगलेकर - Dr. Narhari Chintamani Joglekar.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ १ 1 ॥ उदाहकरणा ‡ मणये वैष्णव कवि सत वुक्ाराम का नाघ्यातमिक प्र्त। आंध्या सिक अभिव्यजना का प्रयोजन, आध्यात्मिकता का सदय, आतठाकत्याश, संयुशब्साक्षाल्ार, सगुण का स्वरूप, परव्रह्म का स्वरूप, संगुण-भक्ति, विययकू ठुकाराम का अभिमत, सगुणन्साक्षात्तार के कतिपय अन्य अनुमव। भक्तका भगवान्‌ पर विर्मर रहता, तुकाराम का आत्मनिरीक्षण और आत्मदर्शन, अम्यर्मता। छुवाराम की पारमाधिक अभिव्यक्ति का ফবভঘ | भगवान्‌ का साक्षात्‌ दर्शन, तुकाराम को तपम्या-माघता, साधकावस्था, भक्त को भगवान्‌ को सहायता, तृकाराम को बराग्य प्राप्ति और जीवन-हृश्टकोश, आध्यात्मिक अभिव्यक्ति की प्रेरणा, तुकाराम की आाध्यात्मिक अवस्थाएं, नामसकीतेन, सत्सद्भ, मक्त की अभिलापा | नामस्मरण का साम्यं, वैष्णवो का धमं, ्राचरण शुद्धता भौर बेरास्य, प्रारमाथिक गिद्धावस्था, মাচ্যাতিক जीन डा आनन्द । सगृ भक्ति कौ मिदधावस्या, অনন্য दरणाग्ति, भगत्‌ क परेन एक महद्‌ वरदान, विद्ठते को सवंव्यापक्ता 1 ममयं रादा का आध्यात्मिक पक्ष ! आध्यात्मिक अमुभूति को पूदं पीटिका, आध्यात्तिक अनुभूति लेने बालों में समर्थ रामदास की विशेषता, समर्थ रामदास की स्वतन्र साधना-अणाली, रामदाम के व्यक्तित्त ये पाई जाने वाली विशेषताएँ जिमसे वे राष्ट्र बने । 'रामसंन्भ-सोधनां से मिलने वाला सामर्थ्य-जीव का कर्तंब्य, समर्थ रामदास का मात्म निरीक्षण, गृषस्तवन, सगुण-उपास्य का स्वस्थ । सगुणश-ब्रह्म राम की मानसपूजा, उपासना वा महत्व जीवन का हश्कोरा, भक्ति का महत्व, मत की चलता भगाने वा प्रयत्न, मानव और ससार का सबन्ध, समर्थ रामदास की अपने भनको दी गई सार्थक चेतावनी, भक्त, भगवान्‌ का सबन्ध | समर्थ के आध्यात्पिक पक्ष का रहस्य । सप्तम्‌ अध्याय च स= शष्ठ ४९१ ते ४२४ हिन्दी दंष्णाव कवियों का आध्यात्मिक पक्ष-- महात्मा बदौर के साहित्य का प्राध्यात्मिक पक्ष,फवीर की देष्णवता,क्दीर की मान्यता, पेम-मादना, सदगुद हौ एकमात्र साधने, भदगुरूमहिमा, उपास्य की चाह, ट्य का स्वरूप, मक्त जोर गवाम्‌ के विभिन सम्बन्ध, ब्रह्म का ब्यक्त स्वरूप, माया का स्वरूप । झवीर का मातवदादी और समन्वयात्मझ ष्टिको । गोस्वामी. तुनमीदाम श्व वरेण्य तथो महान वेष्लव भक्त्रयर का गाध्योतमिक चक द्म दौ विशेषताएँ । सग्रुण उपासता साध्य भी है। माया का स्वरूप, जोव भ स्वरूप, जीव खी हदयस्य भिद, दूरवर दे লিক श्रे ¦ भान्‌ अतति, तुलसी के जगवू सबन्धौ विवार, तुसपी का भक्ति पथ, दास्य-मक्तिका स्वस्य । मर्श धतव




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