कुंद कुंद प्राभृत संग्रह (१९६०) | kunda Kunda Prabhrita Sangraha (1960)ac 4081

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना ज बड़े आदरसे घर ले आया। उसने उन्हं श्रपने मालिकके धर्मे एक पवित्र स्थान पर विराजमान कर दिया और अति दिन उनकी पूजा करने लगा। कुछ दिनके पश्चात्‌ एक मुनि उनके घर पर पधारे | सेठने उन्हें बड़े भक्तिभावसे आहार दिया । उसी समय उस ग्वालेने वह आगस उन मुनिको प्रदान किया। उस दानसे मुनि बड़े प्रसक्ष हुए ओर उन्होंने उन दोनोंको आशिवांद दिया कि यह ग्वाला सेठके घरमें उसके पुत्र रूपमें जन्म लेगा । तब तक सेरके कोई पुत्र नहीं था। मुनिके आशिवोदके अनुसार उस ग्वालेने सेठके घरमें पुश्र रूपसे जन्म लिया । और बड़ा होने पर वह. एक महान्‌ मुनि और तस्व ज्ञानी हुआ । उसका नाम हुन्दकुन्दाचार्य था। डनके चारणंकिे साथ पूवं विदेह जानेकी कथा पूर्ववत्‌ वर्गित दे । एक कथा হাস হাল फलके उदाहरण रूपमे बह्मनेमिदत्तके आराधना कथा कोशम है, जो प्रो० चक्रवर्तीं वाली कथासे मिरती हुई है । कथा इस प्रकार ह-- “भरतक्षेत्रम कुरुमरई गांवम गोविन्द नामका एक ग्वाला रहता था । एक बार उसने एक जंगलकी गुफामें एक जैन शास्त्र रखा देख! । उसने उस शास्त्रको उटा लिया श्रौर पद्‌ मनन्दी नामके मुनिको भेटकर दिया। उस शास्त्रकी विशेषता यह थी कि अनेक भहान्‌ आचार्योने उसे देखा था ओर इसकी व्याख्या लिखी थी और फिर उसे गुफामें रख दिया था। इसीलिए पद्म नग्दि सुनिने भी उसे उसी गुफामें रख दिया। ग्वाला गोविन्द्‌ बराबर उसकी पूजा करता रहा। एक दिन उसे व्यालने खा डाला | मर कर वह ग्वाला निदानवश आमपतिक्रे घरमें उत्पन्न हुआ। बड़ा होनेपर एक बार उसने पद्म नन्दि मुनिके दशन किये श्रौर उसे अपने पूवं जन्मका स्मरण हो आया । उसने जिन दीक्षा धारण कर ली और समाधि पूवक मरण करके राजा कौणडेश हुआ । वहाँ भी सब सुखोंका परित्याग करके उसने दीक्षा लेली। उसने जिनदेवको पूजा की थी और गुरुओंकी सेवा की थी अतः वह श्रुत- केवली हुआ | रत्न करंड श्रावकाचार (छो० ११८) में शाख्रदानमें कौरडेशका नाम दिया है। और उसकी संस्क्ृत टीका में उक्त कथा दी है । पं» आशाधरजीने ( वि० सं० ३३०० ) अपने सागार' धर्माश्तमें १--'कडेशः पुस्तकार्चावितरणविधिनाप्यागमाम्मोधिपारम्‌ ॥




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