वैशेषिक दर्शन | Vaisheshik Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पदाथ विचार को स्वीकार किया जा सकता है । किसी वस्तु की सत्ता तथा उसकी ज्ञयता आदि उस वस्तु के पृथक धर्म नहीं माने जा सकते हैं क्योंकि ये सब वस्तुझ्रों के स्वरूप हैं प्रमिधेयत्वमपि वस्तुन स्वरूप सेव मावस्वरूपमेवावस्थाभेदेन ज्ञेयत्व--मभिधेयत्वं चोच्यते न. क. पू. १६ अ्रत सत्ता ज्ञेयत्व श्ौर अभिधेयत्व इनमें से किसी एक से पदार्थ का धर्म निरुपण हो सकता है । इसे प्राय वैशेषिक दार्शनिक स्वोकार करते हैं । श्री उदयनाचार्य के श्रनुसार जहां भी सत्ता है वहाँ प्रमिधेयत्व ज्ञ यत्व श्रवश्य है-- ्मिधेया पदार्था --लक्षणावली पृ. १ श्री श्रन्नंभट ने बताया कि अ्रभिघेयर्व पदार्थ सामान्य का लक्षण है-- प्रभिघेयत्वं पदार्थसामान्यलच्तरार -वंकं दीपिका पृ. २ श्री शिवादित्य के अ्रनुसार पदार्थ प्रमा के विषय हैं । इस प्रकार वैशेषिक दर्शन में पदार्थ सामान्य के तीन लक्षण तथा एक लक्षण दोनों का प्रतिपादन मिलता है। परन्तु सरलतया बोध के लिये तीनों लक्षण श्रावश्यक प्रतीत होते हैं । भाष्यकार प्रशस्तपादाचार्य ने सम्भवत इसी दृष्टि से तीनों लक्णों का प्रतिपादन किया हैं । सत्ता पदार्थ की वास्तविक स्थिति श्रस्तित्व स्वरूप का परिचायक है । वस्तु की सत्ता वास्तविक है काल्पनिक नहीं । यह मत योगाचार विज्ञानवादी वौद्ध के विल्कुल विपरीत है । विज्ञानवाद विज्ञान के अतिरिक्त वस्तु की सत्ता नहीं स्वीकार करता । दूसरे लक्षण ज्ञेयत्व के द्वारा बैशेपिक दर्शन श्रज्ञेयवाद 5.ड००5पि050प का परिहार करता है । तत्व भ्रज्ञेय नहीं ज्ञेय हैं । सत्ता का स्वरूप इन्द्रिय-ग्राह्म है । अर्थात्‌ सत्ता बोध-गम्य है । तीसरा लक्ण अभिधेयत्व भी सप्रयोजन है । पदार्थ-ज्ञान व्यक्तिगत नहीं सार्वजनीन है । बोध की श्रभिव्यक्ति भी सम्भव है । ग्रमिव्यक्ति के माध्यम से हमारा ज्ञान व्यक्ति की परिधि को पारकर सामान्य ज्ञान का रूप ले लेता है । भरत पदार्थ का बोध सर्वगत सामास्य बोध हो सकता है । पदार्थों के सामान्य लक्षण पर विचार करने से पता चलता है कि वैशेषिक के पदार्थ ताकिक 1.0ा1091 ही नहीं तात्विक 00000108ा081 भी हैं । ४.




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