गुरु और माता पिता भक्त बालक | Guru And Mata Pita Bakht Balk

Guru And Mata Pita Bakht Balk by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुरु और माता-पिताके भक्त बालक उनके आगे रखनेके लिये दोड़ पड़े । परंतु जूतेके पास दोनों साथ ही पहुँचे | इसलिये अब उनमें यह झगड़ा उठ खड़ा हुआ कि गुरसेवाका यह पुण्यकर्म कोन करे | अन्तमें दोनोंने यह निश्चय क्रिया कि दोनों आदमी एक-एक जूता उठाकर गुरुके चरणके अगे र्लं । एता दी किया गया । इस वातकी खबर खलीफाके कानोंमें पहुँची और उन्होंने शिक्षककों बुला भेजा । मार्मूने शिक्षकसे पूछा कि आज दुनियामें सबसे अधिक प्रतिष्ठित और पूज्य कौन है !” शिक्षकने कहा--शवसल्मानेकि खामी मार्मूंकी अपेक्षा अधिक प्रतिष्ठित और कोन हो सकता है ?” मार्मेने कहा--“नहीं, वह पुरुष है जिसका जूता सीधा करनेके लिये मुसल्मानोंके खामीके पुत्र परस्पर झगड़ते हैं !? शिक्षकने उत्तर दिया कि 'मल्ले अपने शाहजादोंको ऐसा करनेसे रोकनेकी इच्छा हुई; पर पीछे विचार हुआ कि मैं इनकी श्रद्धाकों क्यों रोक १! मामूने कहा--“आपने इनको रोका होता तो में बहुत ही नाराज होता। इस कामसे इनकी इज़त कुछ कम नहीं हुईं, बल्कि इससे इनकी कुलीनता और शिशचारका परिचय मिलता है । बादशाह, पिता ओर गुरुकी सेवा करनेसे प्रतिष्ठा बढ़ती है, घटती नहीं ।' ऐसा कहकर उन्होंने गुरुमक्तिके बदले लड़कोंको हजार- हजार दरहम पुरस्कार दिया ओर अध्यापकका कर्तव्य टीक-टीक पालन करनेके कारण शिक्षककों भी उतना ही इनाम दिया। न्नित টি ( २ )




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