पद्मपुराणम् भाग - 2 | Padm Puranam Bhag - 2

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Padm Puranam Bhag - 2  by पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषयानुक्रमणिका হ अपने आपको प्रकट किया । रामके पास सब लोग पहुँचे | राजा पृथिवीधर रानी इन्द्राणीके साथ सज-धजकर उनके पास गये। आमोद-प्रमोद्से लद्धमणका वनमात्ञाके साथ विवाह हुआ | १४७-१४४ सेतीसवँ पं राजा प्रथिवीषरके सभामण्डपमे राम सुखासीन दै उसी समय राजा श्रतिवीयंका दूत एकं पत्र राजा प्थिवीधरको देता है। उसमें लिखा था कि मैं अ्योध्याके राजा भरतके प्रति अभियान कर रहा हँ प्रतः सहायताके लिए. सदक बल शौर पधारो । रामके पूछने पर दूतने भरतके प्रति दोनेवाले श्रमियानका कारण भी बताया । राका संकेत पाकर राजा प्रथिवीधरने दूतको आश्वासन देकर विदा किया । तदनन्तर परसरके बिचार-विमशंके बाद, राम लद्मण- सीता ओर प्रयिवोषरके पुत्रके साथ ब्रतिवीयंको राजधानीकी श्रोर चले। वहाँ पहुँचकर उन्दनि बड़ी गम्भीरताके साथ कर्तव्य मागंका निणेय कर, राम-खदमण सौताको श्रार्धिकाश्रफि पास छोड़ नर्तकियोंके वेषमें अ्तिवीयंके दरबारमें गये। वहाँ उन्होंने अपने अनुपम संगीतं ओर कललापूणं नरत्योसे उसे मन्त्र-मुग्धकी तरह वशीमूत कर जिया । रङ्ग जमा हन्ना देख नतकीने डॉट दिखाते हुए कहा कि तू मरतके प्रति जो अभियान कर रहा है यद्द तेरी मृत्युका कारण है अ्रतः यदि जीवित रहना चाहता है तो मरतको प्रणाम कर । इस प्रकार अपनी तर्जना और भरतकी प्रशंसा सुन क्रुद्ध हो अतिबीयने नर्तकियोंको मारनेके लिए जो तलवार ऊपर उठाई थी लदेमणने उसे रूपक कर छीन लिया श्रौर उससे ही सत्र राजाओ्रोंकी भयभीत कर अतिवीयंको जीवित पकड़ ज्लिया । नतंकिर्योकी यद विचित्र शक्ति देख श्रागत राजा- महाराजा पलायमान हो गये । राम-लदमणने जन्धनबद्ध त्रतिवीर्यको ठे जाकर सीताके सामने रख दिया । उसकी दुःलपूणं त्रवस्या देल सीता दयसे द्रवोभूत ह गई । फलस्वरूप उसने उसे छुड़वा दिया | अतिवीरयने सत्र मान छोड़ कर नभिनदीक्षा धारण कर लो | राम लक्ष्मण रान्निमेधकी तरह श्रव्यक्त रूपसे भरतकी रक्षा कर आगे बढ़ गये । १५५-१६६ अडृतीसर्बौँ पवं रामने अतिवीयके पुत्र विजयरथका रास्याभियेक किया | श्रतिवीयकरे मुनि होनेका समाचार सुन भरत उनके दशन करनेके लिए गया । दशंन कर क्षमा मोगी, मुनिराजकी स्तुति की । भरतको नतंकिर्योका पता नहीं था श्रतः वह व्राश्चर्यसागरमे निमग्न था) वनमालाको आश्वासन दे गम-लदमण श्रागे बढ़े । क्षेमाज्लिपुर नगरके बाहर सत्र ठहरे | भोजनोपरान्त लक्मण, रामकी आज्ञासे नगरमें प्रविष्ट हुए और वदँ के राजा श्रदमनकी शक्तिके भेल कर उसकी पुत्री जिनपद्माको श्रषने पर आसक्त किया | जिनपद्माका पिता राजा शचुदमन सेनाके साथ राम श्रीर सीताके पास गया। राम सेनाको आती देग्व पहले तो आश्वययमें पढ़े परन्तु आदमें यथार्थ बातका पता चलने पर निशिन्त हुए । लद्दमण्षा जिनपश्मके साय विवाह हुआ | १६७-१७७ না ¢ उनतालीस्ँ पव राम-लदमण तथा सीताका वंशस्थयुति नगरमे जाना, भागते नगरवासिेकरि द्वारा पव॑ते त्राते हुए मयङ्कर शब्द्की सूचना तथा रामके द्वारा उसका अनुसरण । देशभूषण तथा कुल- भूषण नामक मुनियोंके दश्शन करके उनका अग्निप्रभ देवके द्वारा किये हुए उपसगंको दूर करना । तथा मुनियोंको केवलशान उत्पन्न होना। मुनियों वाया पर्चिनीनगरीके रजा विजय- पवेत तथा रानी धारिणीके दूत अमृतस्वरके पुत्र उदित तथा मुदितकी कथाका भवान्तर सहित वर्णन, मवान्तर सद्दित देश भूषण तथा कुलभूषण मुनियोंका वर्णन | १७८-१६४ ₹




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