आध्यात्मिक ज्योति | Adhyatmik Jyoti

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Adhyatmik Jyoti by नानालाल जी महाराज - Nanalal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुख-प्राप्ति का साधन ७ वर्तमान युग मे माप बडे बडे धनवान देखते हैं भोर सोचते हैं कि इसके पास झ्पार सपत्ति है। हो सकता हैं कि वे धनवान मी अपनी सपत्ति को असाधारण ही समझते हो, परन्तु भव जरा प्राचीनकाल के व्व सेठो फ स्थिति पर ध्यान दीजिए | झ्राज के घमपत्तियो की सपदा उनके वैभव के भागे कुछ भी नही है । इतना घन तो उनको नजर मे भो नही झाता था । ऐसे ही एक प्राचीन इब्ब सेठ के पुत्र जम्बूकुमार ने युवावस्था में प्रवेश किया । उस समय उसका भ्राठ सुन्दर कयाग्रो के साथ सगाईसम्बन्ध हो चुका था श्रौर विवाह का प्रसग सामने था । यह एक एसा प्रसगरहै कि कोई भी व्यक्ति श्रपना सवरणं नही कर सकता । ऊपरी ष्टि से वह कित्तना ही चि-तन करता हो, परन्तु इस रमणीय प्रौर लुभाने एश्य को छोड करघमं मे प्रवेश करे, यह तो विरले ही व्यक्तियों के वद्य की बात है । उस श्रेष्ठिकुमार ने आचाय सुधर्मास्वामी के एक ही प्रवचन फो सुन कर झ्ात्मिक-प्रकाश प्राप्त कर लिया था और उसमे भ्रपनी हृदयतन्नी का कृत करते हुए वह श्राचाय सुधर्मास्वामा के समीप से भपने माता पिता के चरणों मे पहुचा झौर उनस्ते निवेदन करने लगा कि हे माता-पिता * मैं श्रव इत पाँचो इरद्रियो कैः विषयौ मे, मनोहारी विषयो मे रमण नहीं करना चाहता । य तो बहुत समय से मेरे साथ लगे हुए हैं, परन्तु मुक्े भात्मिक शाति की उपलब्धि नही हां पाई। मैं झज्ञानवश कस्तूरी-मुय की तरह जीवन में भटकत्ता रहा । जब तक मैं उन महात्मा क॑ चरणों मे नही पहुचा था, तव तक तो यहीं सोच रहा था कि इस जीवन का सुख केवल इन देवागनाओ के तुल्य रमणियो में ही है । परतु भाज भेरे भीतर क द्वार खुल गये हैं भझौर मेरे चिःतन की घारा बदल गई है । সন मैंते निश्चय कर लिया है कि यदि इस युवा-




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