हिंदी आलोचना के विकास में विजय देव नारायण साही का योगदान | Hindi Alochana Ke Vikas Me Vijay Dev Narayan Sahi Ka Yogdaan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पर भरपूर शामत सवार हुई जो उसके बारे मे नाटक लिखने का हौसला आपके मन मे बढ़ा | आनन्द कादम्बिनी मे प्रकाशित समीक्षा आकार की दृष्टि से हिन्दी प्रदीप से बडी है। इस नाटक की समीक्षा उपाध्याय प० बदरी नारायण चौधरी प्रेमधन ने सयोगिता स्वयम्वर नाटक के नाम से पप्राप्ति स्वीकार व समालोचना स्तम्भ के तहत किया है। इस समीक्षा मे भूल-दोषो को दिखाया गया है साथ ही सुधार का निर्देश भी दिया गया है| प्रेमघन जी की समीक्षा का अधिकाश भाग त्रुटियो को ही बताने मे निर्दिष्ट है। वाक्य मे आए शब्दों तक मे परिवर्तन की बात कही गयी है। इसके साथ ही प्रेमधन जी ने शेक्सपियर कालिदास भारतेन्दु के प्रभाव को इसमे लक्षित किया है |प्रेमघन जी की व्यग्यात्मक शैली भट्ट जी से भी अधिक तीक्ष्ण है। नाटक के एक दृश्य जिसमे पृथ्वीराज काम भावना के आवेश मे मूर्छित होने लगता है पर प्रेमधन जी की टिप्पणी है- क्या मिरगी आती थी इन समीक्षाओ से स्पष्ट होता है कि भारतेन्दु युग मे आलोचना की दृष्टि एकागी नहीं थी | हा प्रारम्मिक अवस्था होने के कारण आलोचना मे गुण-दोष पर ही अधिक ध्यान दिया गया है। भारतेन्दु ने अपने नाटक अथवा दृश्य काव्य शीर्षक निबन्ध मे जिन प्रतिमानो की बात की थी उन प्रतिमानो के आधार पर ही ये समीक्षाए प्रस्तुत हुई | हिन्दी प्रदीप मे सयोगिता स्वयम्वर के अलावा रणघधीर प्रेममोहिनी नील देवी भारत-दुर्दशा आदि नाटकों पर भट्ट जी ने समीक्षात्मक विचार प्रस्तुत किया है। नाटकों के अतिरिक्त इस पत्र मे मौलिक तथा अनुदित उपन्यासों की समीक्षा की गई है। परीक्षा गुरु के अतिरिक्त अपने समय के बहुचर्चित उपन्यासों रमेश चन्द्र दत्त के बगला उपन्यास का बाबू गदाधर सिह कृत हिन्दी अनुवाद बगविजेता तथा गोपाल राम गहमरी कृत देवरानी जेठानी की समीक्षा करते हुए भट्ट जी का मानना है कि ऐतिहासिक-सामाजिक नाटक लिखने वालो को ऐसे उपन्यासो से प्रेरणा लेनी चाहिए | 8




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