हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग | Hindi Ke Vikas Mein Apbhransh Ka Yog

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Hindi Ke Vikas Mein Apbhransh Ka Yog by नामवर सिंह - Namvar Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ रोमांस काव्य--हैम प्राकृत व्याकरण के दोहदे--मुंज के दोहे-- संदेश रासक--नीति और सूक्ति काव्य--गद्य साहित्य तपभ्रंश साहित्य का ऐंतिदासिक महत्त्व | २. अझपभ्रंश और हिंदी का साहित्यिक संबंध २५६--३१६ अपभ्रंश और हिन्दी साहित्य के इतिहासकार-- त्पभ्रेंश और हिन्दी का ऐतिहासिक सम्बन्ध--हिन्दी साहित्य का ादिकाल श्र अर्ण्रेश--झदिकालीन हिन्दी साहित्य के अन्तगत शअन्तर्विरोध--श्रपभंश साहित्य के अ्न्तगंत न्तर्विरोध--परवर्ती श्रपभ्रंश का रूद़ काव्य श्रौर हिंदी के चारणु-काव्यों में उसका निर्वाइ--हिंदी में अपग्रंश की जीवंत परम्परा का विकास--अपअंश लोकगीत श्र हिंदी के श्ंगारी मुक्तक--वीसलदेव रास--ढोला मारूरा दृह।--शपभ्रश कथाएँ तर हिंदी के झाख्यानक काव्य--राम और कृष्ण भक्ति काव्य -द्यपभ्रंश का सिद्ध साहित्य श्र दिंदी संत काव्य--काव्य रूप--छुंद--हिंदी में झ्पभ्रंश छुंदों का निर्वाह श्र सुघार-- हिंदी में अपभ्रंश के काव्य-रूपों का निर्वाह और सुधार-- काव्य रूद्टियाँ--कथानक-संबंधी मोटिफ़ या रूठ़ि । उपसंहार ३१७--३९२० परिशिष्ट अपभ्रंश-दोहा-संग्रह इरदे-ए ३४६ सहायक साहित्य




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