रवींद्र-साहित्य | Ravindra Sahithya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
147
श्रेणी :
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No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६
गान्धारी-
সবলহাজ্দু-_
गान्धारी---
रवीन्द्र-साहित्य : सोलहवा भाग
इसी विधि पापन-बुद्धि पितृस्नेह् - रूप धर
कितनी ही तीखी बातें सुईसे भी तीक्णतर
चुप्पे-वुप्पे कानोमे चुमोने लगी । तिसपर
ज़एवाखी शस वन - गमनछी टउलिकर
पाण्डवोसे कहा मैने छौटनेको । हाय धर्म,
हाय रे प्रवृत्ति-तेग। समभेगा मेरा म्म
जगतमें कोन ?
नहीं धर्म सम्पदाके हेतु,
महाराज, धर्म नहीं सुखका भी क्ष सेतु,
बमेका उद्देश्य धम। स्वामी, में हूँ नारी मूढ,
मैं क्या समझाऊँ भला तुम्हें ध्मेतत्व गूढ,
ज्ञात तुम्हें सभी कुछ । पाण्डव जायेगे बन,
रोकेसे रुकेंगे नहीं, पणबद्ध इस क्षण।
तुम्ही अब इस महाराज्यके एकाधिपति,
ই महीप} त्याग करो पुत्रका, हे महामति !
दुख दे निदोषोंको न भोग करो पूर्ण सुख,
न्याय ओर ध्मको न करो ठम पराड्मुख
कौरव-प्रसादसे । हाँ, करो तुम अगीकार
আবী, है धमेराज, सुदु सह दुःख-भार,
धरो उसे मेरे सिर ।
सत्य, हाय, महारानी,
सत्य उपदेश तब, तीत्रतम तव॒ वाणी ।
तनय अधमेका ले भघु-लिप्त विष-फल
नाचता आनन्दसे हे। स्नेह-ममतामे ढल
भोगने न देना उसे बह फल, छीन ठेना,
रौद देना, फेंक देना, पुत्रको रो लेने देना।
फेंक छुल-लब्ध पाप-र्फीत राज्य घन जन
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