भारतीय विदेश - निति के आधार | Bhartiy Videsh Niti Ke Adhar
श्रेणी : हिंदी / Hindi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29.48 MB
कुल पष्ठ :
299
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पर भारतीय विदेश लीति के आधार डर की प्रवृत्ति का फ़ायदा उठा कर साचें 1809 में वह एक प्रारंभिक संधि करने में सफल हो गया । इस करार में इंगलैड के साथ मैँत्नी की व्यवस्था थी और साथ ही यह भी व्यवस्था थी कि जब तक ग्रेट ब्रिटेन की रूस से लड़ाई चलती रहेगी तब तक फ़ारस को 1 60 000 तोमनों 1 20 000 पौंड का वाधिक उपदान मिलता रहेगा और फ़ारस की सेना के प्रशिक्षण के लिए ब्रिटिश अफ़सरों की सेवाएँ सुलभ रहेंगी । इसी प्रारभिक संधि के आधार पर सर गोर आउस्ले ने निश्चायक संधि की बातचीत और व्यवस्था की और 1814 में यह संधि पक्की हो गई। इस वचनबंध की शर्तें काफ़ी व्यापक थी और इसे विशेष रूप से प्रतिरक्षात्मक घोषित किया गया था। इसके अनुसार फ़ारस और यूरोपीय राष्ट्रो की वे सब मैत्नी-संधियाँ--जो ग्रेट ब्रिटेन के प्रतिकूल थीं--अकृत और शून्य हो गई और कोई भी यूरोपीय फ़ौज--जो प्रेट ब्रिटेन के प्रतिकूल हो--फ़ारस में कदम नहीं रख सकती थी । इसके अलावा शाह इस बात के लिए बाध्य था कि वह ख्वाराज्म तातारिस्तान बुखारा और समरकंद के शासकों को उन फ़ौजो का विरोध करने के लिए तैयार करे जो भारत पर हमला करने के इरादे से उनकी सीमाओं में से गुजर रही हो। यह भी तय हुआ कि दोनों देश रूस के विस्द्ध एक-दूसरे की मदद करेंगे और ब्रिटिश सरकार ने रूस और फ़ारस की सीमाएँ निर्धा- रित करने का काम अपने ऊपर ले लिया। संधि में आगे चल कर यह व्यवस्था भी की गई थी कि जब कभी ग्रेट ब्रिटेन की किसी ऐसे यूरोपीय देश के साथ सधि होगी जो फ़ारस के साथ लड़ाई लड़ रहा हो तो उस संघि मे फ़ारस को भी शामिल किया जाएगा और अगर ऐसा न हो सका तो फ़ारस को सैनिक और वित्तीय सहायता दी जाएगी । इस संधि मे अफ़गानिस्तान के बारे में भी एक दिलचस्प धारा थी जिसके अनुसार ब्रिटिश सरकार का यह वायदा था कि अगर फ़ारस और अमीर के बीच लड़ाई हुई तो वह हस्त- क्षेप नहीं करेगी पर फ़ारस इस बात के लिए सहमत हो गया था कि अगर अफ़गानिस्तान ने ग्रेट ब्रिटेन के साथ लड़ाई छेड़ी तो वह अफ़गानिस्तान पर हमला बोलेगा । उपदान की राशि बढ़ा कर 2 00 000 तोमन कर दी गई और यह उस समय तक मिलते रहने को थी जब तक फ़ारस किसी देश पर आक्रमण करके लड़ाई मोल न ले । तेहरान की इस संधि ने फ़ारस में ब्रिटेन की नीति को निश्चित रूप से रूस-विरोधी 1 इस बातचीत के और प्रारंभिक संबंधों के विस्तृत विवरण के लिए देखिए रॉलिन्सन पृ. क.. पृ. 8-35. रॉलिन्सन ने इस बात पर ज्ञोर दिया है और यहू ठीक ही है कि शुरू-शुरू में फ़ारस के साथ अंग्रेजों के संबंधों के दो मुख्य उद्देश्य थे--एक तो अफ़गान शक्ति के प्रति-संतुलन की स्थापना और दूसरे फ्रांस की महत्त्वाकाक्षा का शमन । पहले और दूसरे दोनों ही उद्देश्यों का सीधा सरोकार भारत की रक्षा से था और इस मामले में अभी रूस का सवाल बीच में नहीं आया था । पृ. 29. 2. तारीख 25 नवंबर 1804 की तेहरान-संधि के आधार पर इस निश्चायक संधि में संशोधन हुए। यह संधि मोरियर और एलिस द्वारा की गई थी और इसके उपबंध अधिक उदार थे। रॉलिन्सन पृ. 35. ५. साइक्स. पू. कू. ग अध्याय 107४ पृ. 309-10. की हा
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