पर्वत की सैर | Parvat Ki Sar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परबेत की सैर ^ & -
भी न था। हमारे भी गोइन्दे छूटे रहते हैं। हमको रत्ती-रत्ती खबर
पहुँचती रहती है । यह न जानना-- _
भ०--इन सब आदमियों को न एकदम से अलग किया
हो तो सही | इधर की उधर तगाते हैं। यह तुमसे आकर किसने ?
জুন उड़ायी, उस्रका नाम तो बताओ, अभी:अभी, इसी दम न
निकाला दो तो सही ।
बे०--वाह वा ! क्या हँसी-ठट्ठा/है, निकाल देंगे। तुम तो घस
उन्हीं लोगो से खुश रहते हो जो जेसवाये बुलाये । हुजूर, जगदीश-
पुर की एकर देहातिन हैदरगंज मे चान के टिकी है'। अभी कोई
चोददनौ' साल है, शरौर चेहरे पर वजो नमकीनो है । वस, दुम
खिल गये कि वाह, क्या अच्छा आदसी है. | मैं सब सुना करती.
हूं । हमको रत्तो-रत्ती खबर भिलती रहती हैः । तुमने घड़ायी है तो
ছল भी भून-भूल खायी है | जबसे मैंने सुना है, कलेजा कॉप-
उठा दे । वाह क्यासूमीद्ै।. _ _ ., ।
अ०--क्रसम खाकर कहता हूँ, सब॑ बातें:ही-बातें है. (जाना और
आना कैसा ? हम-मैसे सफ्र के काबिल हैं. भला ! और फिर पहाड़
का सफूर १ हम भला अपने बतन को छोड़कर कब जानेवाले हैं---
क्या दक्गीकत खं की हमसे छुड़ाये लखनऊ ।
लखनऊ हम पर फिदा है हम फिदाये लखनऊ।
पहाड़ फोई ओर ही जाया करते होंगे । ।
बे०--बन्दी इन वातो मैन माने की। शर क्सम खाच्मोः
तो मानूँ। हों, हमारे सिर की कसम खाओ, तो शायद यक्कीन `
ছসা जाये। ৪
अआ०--( भुस्कराकर ) या खुदा ! यह बदगुमानी । बड़ी अछ्-
मंद् हो | बस, तुम्हारी अकु आजमा ली। जूरा-सी बात में कोई:
इतना रूढ जाता है । , | ४ श
'बै०-- चुटकी लेकर ) यह तुम्हारे नजदीक जरा-सी बात
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