चित्र का शीर्षक | Chitar Ka Shisak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चित्रक शीर्षक ) १५ देना चाहा परन्तु मस्तिप्क में भरे हुये नारी की विरूपता के यथार्थ ने उसका पीछा न छोड़ा | वह बनारस लौद आया और अपने ऊपर डिये गये अत्याचार बा बदला लेने के लिये रण और कूची सेझर दौनवेस के सामने जा सड़ा हुआ । जयशज मे एक चित्र बताया, एत्ंग्र पर बेटी हुई सीता का । उसका पेद फूल्ता हुआ था, चेहरे पर रोग का पीलापन, पीडा से फैली हुई आमि, कराहूट में खुल कर मुड़ें हुये होठ, हाथ-पाव पीडा से ऐंठे हुये । जमराज थहृ चित्र पूरा कर ही रहा था कि उसे सोम का पत्र मिला | सोम में अपने पुत्र के नामकरण की तारीख बता कर बहुत ही प्रवल अनुरोध किया था कि उस अवसर पर उसे अवश्य ही इलाहाबाद आना पडेगा। जयराज ने पुंझलाहट में पत्र को मोड़ कर फेक दिया, फिर औचित्य के विचार से एक पोस्टकार्द लिख डाला-पन्यवाद, बुभ कामना और बथाई | आता तो जरूर परल्नु दस समय स्वय मेरो तबियत ठीक नहीं / शिशु को आधीर्वा३ । सोम और मीता को अपने सम्मानित और हपालु मित्र का पीस्ठ काई दानिवार को मिला । रविवार वे दोतों सुबह की गाड़ी से बनारस जयराज के मकान पर जा १हुंने ! नौकर उन्हे सीधे जयराज के चित्र बनाने के कमरे मे ही ले गया। वह नया चित्र रावसे आगे अभी चित्र बनाने की टिकटिकी पर ही बढ़ा हुआ हुआ था। सोम और नीता की आल उस चित्र पर पड़ी और यहीं जम गईं । जयराज अपराध की सज्जा से गद्य जा रहा था। बहुत देर शक उसे अपने अतिथियों कौ ओर देखने का साहम ही न हुआ और जय देया तो नीता गोद म कित्ति वन्वे को एक हाय से कठितता से सम्माज़े, दूसरे हाथ से साड़ी का आचल होठो पर रखे अपनी मुस्कराहट छिपाने की चेप्टा कर रही थी । उस की आसें गर्व और हँसी से तारों की तरह चमक रही थी । लज्जा और पुलक की मिलावट से उसका बेहरा सिदूरी हो रहा था । जयराज के सामने सड़ी नीता, रानोखेत मे नोता को देसने से पहले और उसके सम्बन्ध में बनाई केल्पवाओं से कही अधिक सुन्दर थी । जयराज के मन को एक धवका छगा-ओह, घोखा ! और उसका मन किर धोले की ग्तानि से भर गया । जयराज ने उस चित्र को नप्ठ कर देने के लिये समीप पड़ी छूरी हाथ मे उठा ली । उप्ती सम्रम नीता का पुलक भय भ्नन्द मुनाई दिवा--“इस चिव का




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