राजस्थानी लोक कथाएँ [खण्ड-1] | Rajasthani Lok Kathaye [Khand-1]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्‌ राजस्पानो लोक-कथाएँ पिला उसे यही उत्तर देती गई। नाठो के यहाँ पहुँचकर भी सोठ ने कोई काम नही क्या । जब उसकी नानी मामी कोई काम ओदाती तो सोढ यही उत्तर देती, याही हलदी पलदी मैं हूं सठवा सूठ, दाम बचें वो मेरे हाथां मे साल कोनी पडज्या के ?” थोड़े हो दिनो में उसकी मामियाँ उससे उकता गई । वें मन में कहती कि सोठ किसी प्रकार यहाँ से निकले तो अच्छा रहे । निदाव सोंठ वहाँ से चलो तो उपस्की লালী मामियों ने उसे नाम-मात्र कौ चीजें दी । रास्ते में उसे बही झडवेरी मिली जिसमें बडे भीछे बोर ऊगे थे । सोझ ने बेर मांगे सो झडवेरी ने उसे झिडकते हुए कहा कि वाम करते वक्‍त तो तेरे हाथो में साल पड़ता था अब बेर मांगने आई है, माग जा यहाँ से । सोठ को रास्ते भर यही उत्तर मिला । चह खिन्न मन से धर पहुँची । घर पहुँचने पर सवने सोठ से यही बहा कि बाई, सव को काम प्यारा है, चाम प्यारा नही, ह॒लदी ने भाग माग कर वाम क्या तो वह इतनी चीजें ले आई, तू सठवा सोठ बनी रही तो तुझे भक्ता चीजें भी कहाँ से मिलती ? ७ कागलछो और चिड़ी एक चिडी और नोवा आपस में दोस्त थे । कौवे को मिछझा छाल और चिडी वो मिझा एक भांती । कौवे ने चिडी से वहा कि जरा अपना मोती तो दिखछाना | चिडी ने मोती दिखलाया और कौवा उसे अपनी चांच में दबाकर 'नीमडी' (नीम वा वृद्ध) पर जा बैठा। चिडी मे नीमटी से जाकर कहा वि नीमडी नीमडी काम्र यडा। लेक्नि नीमटी ने उत्तर दिया, + मैं क्यू उटाऊ मेरो के लियों॥” “काग मोती देव नी, चिड्ठी रोवतों र॑वंसी” (कथा कहते समय हर बार इस पद को दोहराया जाता है ।) नीगडी ने उतर से असतुष्ट होवर चिडी खाती के पास जा बर बोली वि--सावी खाती नीमडी काट । ठेकिन सतती ने भी कह दिया, “मैं क्यूं कार्टू मेरो दे लियो ।” तब चिडो ने राजा के पास पुकार वी, 'राजा राजा स्राती ने डड' क्लेकिन राजा ने उत्तर दिया कि “मैं दयुं डड मेरो के कियो। तव चिडी मे




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