भगवदगीता | Bhagwad Geeta

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Bhagwat Geeta by व्यास - Vyasa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिचयात्मक मिवस्थ श्श मूमिका में किसा है. परम्तु बे इस समम प्राप्त महीं होती ।* इंकराचायें मे इस बात को जोर देकर कहा है कि बास्तगिरूठा मा इह्दा एक ही है भौर उससे मिन्‍न दूसरी बस्तु कोई तहीं है । यह दिखाई पड़नेजासा विविषरूप संसार भ्रपने-भापममे वास्तविक महीं है. यह केवल उस लोगों को बास्तबिक प्रतीत होता है, जो पज्ञान में (विद्या में ) बीवत बिताते हं। इस सार में फंस जाना एक बस्बत है जिसमें हम सब फंसे हुए है। यह डुर्दा हमारे प्रपने प्रयहनों से महीं हटाई जा सकती । कर्म ब्यर्ष हैं भौर थे हमें इस वास्तविक विश्व प्रक्रिया (संधार) से कारभ भौर कार्य की भस्तह्ीत परम्परा से मजबूती से चकड़ देते है। केबस इस शात थे कि विदिनम्मापी ब्रह्म भौर स्पनित की भ्ारमा एक ही बस्तु है हर्मे मुक्ति मिल सकती है। जब यह शात उत्पत्त हो 'बाता है, तब जीग बिसीत हो जाता है. भटकना समाप्व हो जाता है भौर हमें पूर्ण मानस मौर परम सुख प्राप्त होता है । ब्रह्म का बर्गन केबल उसके प्रस्तित्व के कप में ही किया जा सकता है गपोति बहू सब विशेषर्णों से परे है. बिदेष रूप से कर्ता कर्म भौर शान की रिया के सब भेों से अपर है। इसलिए उसे भ्पक्ति-श्प में तहीं माना जा सकता भौर उसके प्रति कोई प्रेम या भद्धा नहीं की था सकती । भंकराचार्य का मत है कि लहां मन को पुद्ध बरते के सिए साधन के कप में कर्म भत्पत्त प्राबस्पक है बह शान प्राप्ठ हो जाने पर कर्म बूर छूट जाता है। शान भौर कर्म एक-दूसरे के ठीक बैसे ही बिरोषी हैं, जैसे प्रकाश भोर पस्थकार । बह शाम-कर्म समुच्भय के बृप्टिकोण को स्वीकार तह्ी करता । उसका विएवास है कि बेदिक निधियां बेबस उन लोगों के लिए है, जो पड्ान भौर सालसा में डूबे हुए हैं । मुक्ति के मिला पिरययों को कर्मकाच्य की बिधियों का परित्याग कर देता चाहिए। संकराधार्य के *. भानस्गिरि शाकराआषं की स््फ्सररीतय कौ टीका पर सपनी टीका में गूसरे भच्चएन के इससे स्लोक मैं काचय दे कि बुत्तिकर ने जिसने सदस्य पर बड़ी चित्त दौका लिएी है, बीत पर सी एक बुत्ति था दौका लिए दी. जिपं बद बगास्य पा ब्य कि मे हो शपेा बान ध्पेर न भला कर्म ाष्यारिमिक मुफ्ति तक है था सकता दे घप्तु इव दोलं के सर्मिलित भम्गास से इम मम सब तक पहुंज सकते दें। बे इक | वे श्३। तस्मा गीतातु बज रेव तलबजानास्पोदमाप्ति: से बमससुक्तिच्तात्‌ । सपक्रूसीता को शकराचर्य बीरीका दे, १? | मे दो कमेंमुश्ति का तात्काशिक करण से मी दो, तो भी बद रखा करने बने बान को प्राप्त करने था एक शाइश्वक साइन है । शकरायएपं ये इसे स्टीकाएं विज द पकमसिफया बा लिप्परमाणिदंदुत्वेन पुर दंदेतु्व मे स्थठा्पेज ।”” भगिधाशामका दब सचाणि भ्र््रशीनि दर्सिकानि । जद




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