श्री राम कथा | Shreeram Katha

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Shreeram Katha by चतुर्वेदी द्वारका प्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwaraka Prasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चाल फाण्ड १९ कर, वक्रे फा यत्रे करने वाटे फो अत्तयय भीर अनन्त फल दीजिये । उन्हेंने ऐसा ही किया। तभी से पितृद्देवों के यज्ञ में बिना अण्डकोप का घकरा दिया जाता है और इन्द्र मेपाण्डकोशी फंद्द ज्ञात ९ | हे रामचन्द्र | इस झाश्रम मे चलत कर व्या को पाप से निमुक्त फीजिये। यह घुन श्री राप् उस श्राश्रम के भीतर गये और उसकी पूज्ञा फो ओर पाप से निमृक्ता होफर वह अपने पति गौतम के पास गयी। उन्होंने भी झाफर राम का पूजने किया और अपनी ख्रो को पाकर खुख पूर्चफ तप फरने लगे | तुलसी दास जी नै श्रहद्या के मुख से भ्री रामचन्द्र जी फी जो स्तुति करवाई है-- उसे दम नोचे उद्धृत फरते हैं ।१ छन्द पे नारि प्रपाचन प्रभु ज्पावन राघनरिपु जनखुख-दाई । राजीव-घिल्लीचन भव-भय-मोचन पाहि पाहि सरनद्दि आई॥ मुनि सापर् जी दोन्हा प्रति भल फीनदा परम सलनुअह में माना । देखे भरि लोचन हरि मव-मोचन इहि लाभ संकरने जाता॥ ` बिनती प्रभु मोरी में मति भोरी नाथ न माँग वर्‌ आना | पर-फप्तल-परागा रस प्रतुरागा मम्र मन मशुप फरदहि पाना ॥ जैद्दि पद सुर-सरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सौत्त धरी | सेद पद्‌-पद्ुज जदि पूजते मज मम सिर धरेड रपाल हरो ॥ पहि भाँति सिधारी गौतम नारे वार वार हरिचरन परी । ` जो सति मन भ्रा से बर पाया गद पति-लीक रनद भरी ॥ तदनन्तर तीनों जम मिथिला नसे ष्टी मोर चले | वहाँ पटुच फर, जनक फी यशशाला में ऐसे स्थाम पर ठेशा डाला जहाँ पर जल का खुबोता था । राजा जनक महर्षि विश्वामित्र के आगमभमे प्ता संदा पाकर शपे परहित एता. লহ झोर ऋत्यिज्ञों का लेकर उनका दशन करने भौर उनका यथोत्ित पूजन करने गये। राज्ञा द्वारा पूजन और कुशल प्रश्न है छुफने पर विभ्यामिन्न জীব লী राजा भौर उनके লহ त्राह्मणों फा कुशल प्रश्न पूंछा। जब शिष्टाचार के अनन्तर सव लोग भ्पने अपने आसनों पर बैठ चुके; तब राजा जमक मे विश्वा- भिन्न ज से पूँछा-''महाराज ये दोनों कुमांर फिसके हैं ” मुनिने कहा-''राजन, ये देतों कुर्मार महाराज दशरथ फे पुत्र हैं। श्र सिद्दा- श्रम में राक्षसों के मार मेरे यश की र्ताकर, वि ০ विशाल पुरो के देखते हुए, হত্যা জা হত ग्रीर महातमा गौतम दारा पूजे जाकर. धतुष यज्ञ देखने के लिये यहाँ आये हैं। गौतमपुन्र शतानन्द भ्रीराम्चन्द्र के कम জীং अपनी माता के उद्दार का चृत्तान्त सुन बहुत प्रसन्न हुए गौर वेछे कि है राम | ज्राप धन्य हैं, जिनके रक्तेक धिश्वामित्र जी हैं। इनफी कथा खुनिये ~ ज्ञापति के पुत्र कुश हुए, कुंश के कुशनाभः), ` कुःशनाम के गाधि, गाधि के विश्वामित्र हुए | ~ ' ------~-- ~~ ~~ -~ -~ ~ ----~-~--~--- १ यथपि वाल्मीकीय रामायण में. यह कथा नहीं है कि अहदया पत्थर हो ॥ ध्री । तथापि दुरसीदास जी ने यदह थात अपनी 'रासीयण तं दिख- তাই है। २ संस्कृत शब्द ‹ दाप 1 ই । ३ + 18 । श्र 1 ६ । ४ + + ' शिव १ है




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