श्री शिव सागर स्मृति ग्रन्थ | Shri Shiv Sagar Samrti Granth

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Book Image : श्री शिव सागर स्मृति ग्रन्थ  - Shri Shiv Sagar Samrti Granth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[६] गिरिनार-यात्रा : प० पूज्य अयं श्री वीरसागरजी महाराज अपने प्रथम शिष्य मुनि श्री शिवसावरजी महाराज को जयपुर खान्या मेँ आचायं पट देकर वि० संवत्‌ २०१४ आशिन ष्णा अमावस्या के प्रात: १०-५० पर स्व्रगंवासी हुए। तदतन्तर आचाय॑ श्री शिवसागरजी महाराज अपने विशाल चतुविध संघ सहित सिद्ध क्षेत्र गिरिनार आदि क्षेत्रों के दर्शंनाथं गए तथा सौराष्ट्र स्थित सारे क्षेत्रो के दर्शनो परान्त पुनः राजस्थान पधारे । प्रभावपूर्ण प्रवचन ! आचार्यश्री का सदुपदेश बड़ा ही मामिक, जीवनोपयोगी, तलस्पर्शी एवं अत्यन्त प्रभावपृणं होता था। श्रद्धापुज महाराजश्री के दर्शन फिर समय-समय पर होते रहे व उनके प्रवचनों से निरंतर लाभ उठाया। फ़ुलेरा, महावीरजी, टोडारायसिह, जयपुर ( खान्या ) लाडनू, सीकर, कोटा, उदयपुर, प्रतापगढ में उनके दर्शनों से मैने लाभ उठाया । त्याग का महत् : आचाय॑ प्रवर की ही सद्प्रेरणा से शांतिवीर नगर की ओर मेरा ध्यान आकृष्ठ हुआ। तदनुसार ही प्रतापगढ़ मे आचाय॑ श्री का 'आहार' होने के उपरान्त उनके ही चरणों में शातिवीर नगर में विज्ञालकाय मानस्तंभ बननि का संकल्प किया । पृज्य आचायंश्री का यही सदुपदिश था कि दक्ति नही छिपाकर विषय कषायो का त्याग करते चले जाओ, पास मे पैसा हो तो पैसे का त्याग करो व सदुप्योग करो | शरीर हो तो शरीर से ममत्व का त्याग करों। इन तीनों पदार्थो की जल-बुलघुले के समान स्थिति है. अर्थात्‌ अनित्य है, क्षण स्थायी है जो इनमे काम ले लेता है, उसे ग्रत में पश्चाताप नही करना पडता है। अत मौके पर कर लिया सो अपना है । सुख की प्राप्ति : “सेठजी, हमारे पास तो त्याग का ही उपदेश है, तंत्र-मत्र, जादू-टोना, तेजी-मंदी कुछ भी नहीं है। जीवो को संसारबंधन से छुटाकर अक्षय अविनाशी पद को प्राप्त करा देनेवाला एक त्याग मार्ग ही है। इसी त्याग के माध्यम से बड़े-बड़े ऋषि-मुतियों ने ऋद्धि-सिद्धि ही क्‍या सम्पूर्ण कर्मों को काटकर नित्यानद सुख को प्राप्त कर लिया। बिना त्याग के यह संसार का प्राणी चारो गतियो मे थपेडे खाता हुआ अनादि काल से बेकार ही जन्म-मरण का दुख उठा रहा है अत. व्याग करें, चारित्र धारण करें, अनादि निधन णमोकार मत्र का जाप करें। यही हमारे पास ज्ञानी आत्या को बताने के लिए एवं संसार से मुक्ति पाने के लिए एक शक्तिशाली मत्र-तत्र या जादू-टोना है। बस, यही एक सही साधन है ।”




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