दुलारे दोहावली | Dulare Dohawali

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Dulare Dohawali by दुलारेलाल भार्गव - Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२४ दुलारे-दोहावली आयः होते ही नहीं । दूसरे प्रकार के शब्द ध्वनि-अनुकरण के संकेत को बतलानेवाले नहीं होते । इनके स्थान में अन्यान्य पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग किया जा। सकता है। जेसे--'छिपि जाय! को हम “ुरि जाय, “लुप्त हो जाय, अंतर्द्घन हो जाये, “अप्रकठ हो जायें” आदि के प्रयोग द्वारा सहज ही प्रकट कर सकते हैं, पर “छुनछुनाय” का सदा-सबंदा एक ही निश्चित, नियत अर्थ रहेगा । अर्थ-भेद में वाच्यार्थ शब्द तीन ग्रकार के होते हैं--( १ ) वाचक, ( २ ) लक्षक ओर ( ३ ) व्यजक | इनकी उन शक्तिप्रों को, जिनसे ये जाने जाते हैं, क्र से ( १ ) अभिधा, ( २ ) लक्षणा और ( ३ ) তলা कहते हैं । इनके अर्थ भी तीन प्रकार के होत ह -( १ ) वाच्यार्थ, ( २ ) लक्ष्यथं ओर (३ ) व्यंग्याथें। जो शब्द परंपरा-मूलक सांकेतिक श्रथ को प्रकट करे, उस्र वाचक योर उसके यथं को वाच्यां कहते हैँ । साहित्यदपैखकार कविराज विश्वनाथजी का मत है - तत्र सांकेतिकाथ श्य बोघनादग्रिमामिधा । (सा० श्र° ६, प्र०२८) अर्थात्‌ “वहाँ सांकेतिक अर्थ के बोध के कारण प्रथम श्र्थात्‌ अभिधा है ।” इनके इस मत से वाचक शब्द सांकेतिक अर्थ प्रकट करता है । संकेत ॒श्रौर अभिधा पर्याथवाची शञ्ड है । न्याय-शाघ्च सै शक्ति फे विषय मे कहा है-- अस्मालदादयमर्थों बोधव्य इतीश्वरसंकेव: शक्ति: | अथोत्‌ “इस पद से यह अर्थ जानना चाहिए, ऐसा जो ईश्वर का किया हुआ संकेत है, वह शक्ति है ।” | वाच्यार्थ के मुख्यार्थ, नामाथें और अभिवेयारथ आदि पर्यायवाची शब्द हैं। अभिधा के इस संकेत का अहण चार प्रकार से होता है - ( $ ) जाति के नाम से, ( २ ) स्वतंत्र नाम से, ( ३ ) धर्मी के




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