देवर्षि नारद | Devrshi Narad

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Devrshi Narad by चतुर्वेदी द्वारकाप्रसाद शर्मा - Chaturvedi Dwarkaprasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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/ आविर्भाव और पूर्वजन्म ३ भगवत्‌ क अवतार है ओर जगत्‌ के परम उपकारक प्रसिद्ध है । सेवा, पूजा, कीर्वन, प्रसाद, भक्तिप्रचार इत्यादि सव ही निष्ठाओं में जे प्रधान हैं। पुराणमात्र भें आपकी शुभकथाएँ भरी हैं। सर्व लोकों मे आपक्रा पर्यटन त्रैवट परोपकार के निमित्त है -यही आपका व्रत-सा ईं }' [ ` इसमे सन्देह नहीं कि, देधप्रिं नारद, जो नामादासजी के शब्दों में 'भगवत्‌ के मानस अवतार हैः नवधा भक्ति के आंचायै ` है ओर्‌ परोपकार ही के लिये वे समस्त छोकों में पर्यटन किया करते हैं| यही नहीं-पुराणमात्र में तथा धार्मिक साहित्य एवं ज्योतिष-शात्र भी आपकी झुभ-कथाओं, आपके अपार ज्ञान तथा आपके अकाव्व सिद्धान्तो से पर्ण है । अतएव यदि हम नारदजी को सरगुणाधार्‌ भगवान्‌ विष्णु का मानस अवतार कहें और उनको ज्ञानभाण्डार का सर्वेसवी मानें तो भी अनुचित न होगा | भगवान्‌ विष्णु के इन मानस अवतार देवि नारद का आविर्भाव कब और कैसे हुआ ? क्या उनके पूर्वजन्म का भी कहीं कोई वृत्तान्त दै ? इन प्रश्नों के उत्तरों के विषय में, हम आगे विचार करगे । इस समय हम यह बतला देना आवश्यक समझते. है कि, अनादि एवं सैव्यापी भगवान्‌ विष्णु के मानस अवतार देवपिं नारद भी अनादि है ओर समस्त कारों म, किसी-न- किसी रूप में इनका अस्तिल वना ही रहता है । इसीसे इनका भसित इस समय भी माना जाता है तथा वस्तुतः है भी । श्रीमद्वाल्मीकि- रामायण, पाशवरात्रशाल, महाभारत, भक्तिसूत्र, समस्त: पुराण १




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