श्री कर्मग्रन्थ | Shri Karamgharnth
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.46 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला कर्मप्रन्थ, (७;
गइ जाइ तणु वंघण संघायणाणि संघयणा ।
संठाण व गंध रस फास अरुपुव्ति विदगगई ॥ २४ ॥
पिडपयडित्ति चउदस परघा उसास थायदुज्ोय ।
अगुरुलष्ट तित्य निपिणों वघाय मियद्मह्ठ पत्तेया ॥ २५ ॥।
१ थे ही
तस वायर पज्जत्त पत्तेय थिर सु्भ च सुभग च।
सुसरा इज्ज जसे तस दसगे थावर दर्स हु इम॑ं... ॥ २६ ॥
थावर सुहम अपज्ज॑ साहारण अधिर असुभ दुभगाणि ।
दुस्सर णाइज्ना जस मियनामे सेयर बीस ॥| २७ ॥|
तस चउ थिर छक अधिर छत थावर चउफं |
राभगति गाइ विभासा तयाइ संखाहि पयडीहि ॥ र८ ||
गति, ज्ञाति, तनु, उपांग, चैधन, संघातन, संघय ण, संस्थान:
'बण, गन्घध, रस, रुपये, आनुपूर्वी ( और ) चिद्दायोगति ॥ २४ ॥
(यह चौद्द पिंड प्रकृति है॥ पराघात, उच्छुवास, आतप, उद्योत,
.अगुरुलघु, तीर्थ कर निर्माण (और) उपघात यदद आठ मत्येक प्रफ़ृति
है ॥ २५ ॥ घस, यादर पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सो भाग्य,
सुस्घर, आदेय और यद्ाः कीर्ति (यह) घ्रस ददाक (कदलाती है।
० और ” स्थायर दददाक यदद है ॥र२६॥ स्याघर, सूदम, अपयांपा,
साधारण, अस्थिर सशुभ, दुःस्थर, अनादेय ( और
अयदशा- कीर्ति यदद नाम कमंफी इतर सहित घीस प्रफ़ृति हुई
२७ ॥ ( अय इन प्रफ़तियोंका कथन करने के लिये
सकेत संक्षा। है) घ्रसचतुष्क, स्यिरछफः अस्थिरछक, सुधम-
'चिफक, स्थाधरचतुष्फ और आदि संयेत्त है इसकी
सादीसे संख्यादे; अन्त तक की प्रक्ृतियां समज्न छेनी ॥ २८ 1
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