श्री कर्मग्रन्थ | Shri Karamgharnth

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Shri Karamgharnth Hindi Sanuwaad by श्री रत्नप्रभाकर - Shri Ratanparbharkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला कर्मप्रन्थ, (७; गइ जाइ तणु वंघण संघायणाणि संघयणा । संठाण व गंध रस फास अरुपुव्ति विदगगई ॥ २४ ॥ पिडपयडित्ति चउदस परघा उसास थायदुज्ोय । अगुरुलष्ट तित्य निपिणों वघाय मियद्मह्ठ पत्तेया ॥ २५ ॥। १ थे ही तस वायर पज्जत्त पत्तेय थिर सु्भ च सुभग च। सुसरा इज्ज जसे तस दसगे थावर दर्स हु इम॑ं... ॥ २६ ॥ थावर सुहम अपज्ज॑ साहारण अधिर असुभ दुभगाणि । दुस्सर णाइज्ना जस मियनामे सेयर बीस ॥| २७ ॥| तस चउ थिर छक अधिर छत थावर चउफं | राभगति गाइ विभासा तयाइ संखाहि पयडीहि ॥ र८ || गति, ज्ञाति, तनु, उपांग, चैधन, संघातन, संघय ण, संस्थान: 'बण, गन्घध, रस, रुपये, आनुपूर्वी ( और ) चिद्दायोगति ॥ २४ ॥ (यह चौद्द पिंड प्रकृति है॥ पराघात, उच्छुवास, आतप, उद्योत, .अगुरुलघु, तीर्थ कर निर्माण (और) उपघात यदद आठ मत्येक प्रफ़ृति है ॥ २५ ॥ घस, यादर पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सो भाग्य, सुस्घर, आदेय और यद्ाः कीर्ति (यह) घ्रस ददाक (कदलाती है। ० और ” स्थायर दददाक यदद है ॥र२६॥ स्याघर, सूदम, अपयांपा, साधारण, अस्थिर सशुभ, दुःस्थर, अनादेय ( और अयदशा- कीर्ति यदद नाम कमंफी इतर सहित घीस प्रफ़ृति हुई २७ ॥ ( अय इन प्रफ़तियोंका कथन करने के लिये सकेत संक्षा। है) घ्रसचतुष्क, स्यिरछफः अस्थिरछक, सुधम- 'चिफक, स्थाधरचतुष्फ और आदि संयेत्त है इसकी सादीसे संख्यादे; अन्त तक की प्रक्ृतियां समज्न छेनी ॥ २८ 1




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