मुर्ख - मंडली | Murkha Mandali

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Murkha Mandali by रूप नारायण - Roop Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला झंक--पहला दृश्य १ गोपाल०--केसे ? भ्याम०--इन्होंने झभी एक उयोतिपी को हाथ दिखाया था, उसने कहा कि इनके जीवन से ऐसा कुछ सुभीता न होगा, क्योकि यह यमघट-योग सें पैदा हुए हैं । सोपाल०--( भगवती से ) क्यों जी सच ? भगवती ०--( सिर ठोककर ) कया कहूँ साहब, शत्रु भी इस यमघट-योग में पदा न हो ' ( गाता है ) [ लघनी 1 हो सके श्रगर तो, तुमको राम दुदाई, यमघट-याण में जन्म न लेना माई ! जन्मा से उस दिन, तेल लगाकर देसे काला कर ढाला टाल धूप म ऐसे । काला देखा है! फिया न श्ादर मा ने, श्रपना न पिलाया दूध माता ने 1 पी दूध गऊ का चुद्धि वल की पाई 1 यमघट-याग० ॥ १ 0 फिर मिलकर सब ने हाय !खा लिया मजा, उस वच्पन ही मे मुझसे सदरसे झेजा 1 था. गुरू कसाई, इतने च्टे मार, गुद्दी कर टी. पिलपिली, चत सटकरे 1 झने भी दिद्या नहीं पठी, रिस शाई 1! यमघट-याग० ४ २ ४




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