मुर्ख - मंडली | Murkha Mandali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.9 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला झंक--पहला दृश्य १
गोपाल०--केसे ?
भ्याम०--इन्होंने झभी एक उयोतिपी को हाथ दिखाया
था, उसने कहा कि इनके जीवन से ऐसा कुछ सुभीता न
होगा, क्योकि यह यमघट-योग सें पैदा हुए हैं ।
सोपाल०--( भगवती से ) क्यों जी सच ?
भगवती ०--( सिर ठोककर ) कया कहूँ साहब, शत्रु
भी इस यमघट-योग में पदा न हो ' ( गाता है )
[ लघनी 1
हो सके श्रगर तो, तुमको राम दुदाई,
यमघट-याण में जन्म न लेना माई !
जन्मा से उस दिन, तेल लगाकर देसे
काला कर ढाला टाल धूप म ऐसे ।
काला देखा है! फिया न श्ादर मा ने,
श्रपना न पिलाया दूध माता ने 1
पी दूध गऊ का चुद्धि वल की पाई 1
यमघट-याग० ॥ १ 0
फिर मिलकर सब ने हाय !खा लिया मजा,
उस वच्पन ही मे मुझसे सदरसे झेजा 1
था. गुरू कसाई, इतने च्टे मार,
गुद्दी कर टी. पिलपिली, चत सटकरे 1
झने भी दिद्या नहीं पठी, रिस शाई 1!
यमघट-याग० ४ २ ४
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