हिंदुस्तान की समस्यायेँ | Hindustan Ki Samasyaye

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Book Image : हिंदुस्तान की समस्यायेँ - Hindustan Ki Samasyaye

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दुस्तान की समस्‍यायें ९. कौन-कौन नियत किये जायं | उन्हें उम्मीद रहती है कि नये विधान में पदों से खूब फायदा होगा,सिफारिशें चलेंगी, वगैरा-वगैरा । उस লাজা- यज फायदे में हिस्सा चंटाने की भी चाह उनमें होती है | कुछ-कुछ इसको लेकर सम्परदायिक्र समस्या उठ खड़ी होती है | अगर राष्ट्रीय पंचायत के चुनाव में जनता का हाथ रहे तो स्पष्ट रूप से जनता पद या नौकरियाँ 'पाने में दिलचस्पी नहीं लेगी | उसकी दिलचस्पी अपनी ही आर्थिक कट्ि नाइयों में है | इसलिए ध्यान फौरन ही सामाजिक और आर्थिक सवालों पर दिया जायगा | ओर वह समस्यायें--जो बड़ी दिखाई देती हैं लेकिन असल में अहमियत नहीं रखतीं, जैसी साम्प्रगयिक समस्या आदि--हृट्कर पीछे पड जायंगी | दूसरा सवाल है -- “क्या भारतीय शासन-विधान से किसी तरह वह जरूरत पूरी होती ह! , मैंने अभी कहा है कि विधान की कसौटी यह है कि वह आर्थिक समस्याओ्रों के, जो हमारे सामने हैं और जो असली समस्‍यायें हैं, सल- भाने में मदद देता है या नहीं ? भारतीय-शासन विधान की, जैसा कि शायद श्राप जानते हैं, लगभग हर दृष्टि से हिन्दुस्तान के हरेक नस्म और गरम दल ने आलोचना की है । हिन्दुस्तान में किसी ने भी उसे अच्छा कहा है, इसमें मुझे सन्‍्देह है | अगर कुछ आदमी ऐसे हैं जो उसे बदश्त करने के लिए. तैयार हैं, तो हिन्दुस्तान में या तो उनके स्थापित स्वाथ ই বা ঈ लोग हैं जो सिफ आदत की ही वजह से ब्रिटिश-सरकार के सब कार्मो को बर्दाश्त कर लेते हैं | इन आदमियों को छोड़कर हिन्दुस्तान के करीब-करीत्र हरेक राजनीतिक दल ने इस भारतोय-शासन-विधान का घोर विरोध किया है | सत्र उसकी मुखालिफत करते हैं ओर उन्होंने दर तरह से उसकी आलो- चनां की दै । सवका विचार दै कि हमारी मदद करने के वजाय वह वास्तव में हमें हटादा है, हमारे हाथ-पैरों को इतनी मजबूती से जकड़ता है कि हम आगे नहीं वढ़ सकते | ब्रिटेन या हिन्दुस्तान के इन तमाम स्थापित स्वार्थों ने इस विधान में ऐसी स्थायी जगह पा ली है कि क्रांति से कम कोई




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