हिंदुस्तान की समस्यायेँ | Hindustan Ki Samasyaye
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
284
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. जवाहरलाल नेहरु - Pt. Jawaharlal Nehru
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दुस्तान की समस्यायें ९.
कौन-कौन नियत किये जायं | उन्हें उम्मीद रहती है कि नये विधान में
पदों से खूब फायदा होगा,सिफारिशें चलेंगी, वगैरा-वगैरा । उस লাজা-
यज फायदे में हिस्सा चंटाने की भी चाह उनमें होती है | कुछ-कुछ इसको
लेकर सम्परदायिक्र समस्या उठ खड़ी होती है | अगर राष्ट्रीय पंचायत के
चुनाव में जनता का हाथ रहे तो स्पष्ट रूप से जनता पद या नौकरियाँ
'पाने में दिलचस्पी नहीं लेगी | उसकी दिलचस्पी अपनी ही आर्थिक कट्ि
नाइयों में है | इसलिए ध्यान फौरन ही सामाजिक और आर्थिक सवालों पर
दिया जायगा | ओर वह समस्यायें--जो बड़ी दिखाई देती हैं लेकिन असल में
अहमियत नहीं रखतीं, जैसी साम्प्रगयिक समस्या आदि--हृट्कर पीछे
पड जायंगी |
दूसरा सवाल है --
“क्या भारतीय शासन-विधान से किसी तरह वह जरूरत पूरी होती ह!
, मैंने अभी कहा है कि विधान की कसौटी यह है कि वह आर्थिक
समस्याओ्रों के, जो हमारे सामने हैं और जो असली समस्यायें हैं, सल-
भाने में मदद देता है या नहीं ? भारतीय-शासन विधान की, जैसा कि
शायद श्राप जानते हैं, लगभग हर दृष्टि से हिन्दुस्तान के हरेक नस्म और
गरम दल ने आलोचना की है । हिन्दुस्तान में किसी ने भी उसे अच्छा कहा
है, इसमें मुझे सन््देह है | अगर कुछ आदमी ऐसे हैं जो उसे बदश्त करने
के लिए. तैयार हैं, तो हिन्दुस्तान में या तो उनके स्थापित स्वाथ ই বা ঈ
लोग हैं जो सिफ आदत की ही वजह से ब्रिटिश-सरकार के सब कार्मो को
बर्दाश्त कर लेते हैं | इन आदमियों को छोड़कर हिन्दुस्तान के करीब-करीत्र
हरेक राजनीतिक दल ने इस भारतोय-शासन-विधान का घोर विरोध किया
है | सत्र उसकी मुखालिफत करते हैं ओर उन्होंने दर तरह से उसकी आलो-
चनां की दै । सवका विचार दै कि हमारी मदद करने के वजाय वह वास्तव
में हमें हटादा है, हमारे हाथ-पैरों को इतनी मजबूती से जकड़ता है कि
हम आगे नहीं वढ़ सकते | ब्रिटेन या हिन्दुस्तान के इन तमाम स्थापित
स्वार्थों ने इस विधान में ऐसी स्थायी जगह पा ली है कि क्रांति से कम कोई
User Reviews
No Reviews | Add Yours...