ज्ञान - ज्योति | Gyan Jyoti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
40
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सहियार !
रचयिता-- ब्रह्मचारी नन्दलाठ महाराज ।
पु
सोरठा---
ज्ञानहिं गुन परतक्ष, षट-द्रव्योको छोकता।
स्व पर प्रकाशक स्वच्छ, नमो ज्योति लख! शाश्वता ॥।१॥।
दोहा
२
अदूभुन रला ज्ञानक,
परिणति क्रिया विचित्र ।
जेय लखे ज्ञायक रहै,
सहज स्वभाव पत्रित्र ॥
४
ह
कम कृत बहु भाव यद,
जीव-मांय सद्भाव ।
ऊपर ही ऊपर निरं,
বল विमात्री भाव ।!
र
परजय सदा अनिल है,
जा विभाव लहलाय ।
धर विवेक टुक देखते,
मिथ्या-भाव
१७
मिथ्या मावहि बंध है,
सम्यक भव अवध ।
ज्ञान मात्र रस स्वादते,
वीतराग
पराय ॥
संबंध ॥
वीतराग रस सरस निज,
श्रद्धे! जाने! जोय ।
सम्यक चारित दतू समय,
সত অলিহাব होय ॥
\9
दशन ज्ञान चरित्र ये,
जीवहिके प्रणाम ।
सम्यक, मिथ्या जानिया;
निजपर आशत नाम ॥
८
{निजको निज जान विना,
पर-निज जानं जोय:
मिथ्यादर्श जीव सब,
इस हीं कारण होय ॥
९,
जो निजको निज हो जप,
पर जानं पर-जब्ब ।
भूल मिर्ट भूले नहीं,
सम्यकदष्टी तन्व ॥
সম €0 পপ ने
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