जीवन का स्त्रोत जीवन | Jivan Ka Istrot Jivan
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.79 MB
कुल पष्ठ :
155
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (1 सितम्बर 1896 – 14 नवम्बर 1977) जिन्हें स्वामी श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद के नाम से भी जाना जाता है,सनातन हिन्दू धर्म के एक प्रसिद्ध गौडीय वैष्णव गुरु तथा धर्मप्रचारक थे। आज संपूर्ण विश्व की हिन्दु धर्म भगवान श्री कृष्ण और श्रीमदभगवतगीता में जो आस्था है आज समस्त विश्व के करोडों लोग जो सनातन धर्म के अनुयायी बने हैं उसका श्रेय जाता है अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद को, इन्होंने वेदान्त कृष्ण-भक्ति और इससे संबंधित क्षेत्रों पर शुद्ध कृष्ण भक्ति के प्रवर्तक श्री ब्रह्म-मध्व-गौड़ीय संप्रदाय के पूर्वाचार्यों की टीकाओं के प्रचार प्रसार और कृष्णभावन
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला प्रातःकालीन भ्रमण १५ मन्रैल १६७३. चेवियट हिल पाक लॉस ऐंजिल्स श्रील प्रभपाद के साथ डॉ० थोडम दामोदर सिंह कर्णघार दास अधिकारी न्रह्मानंद स्वामी भौर अन्य छात्र चल रहे हैं । अन्य ग्रहों पर जीवन श्रील प्रभुपाद--सुर्य और चंद्रमा पर भी जीव विद्यमान हैं । वैज्ञानिकों का इस संबंध में क्या मत है ? डॉ० सिंहु--उनका कहना है कि वहाँ जीवन नहीं है । श्रील प्रभुपाद--वैज्ञानिकों का ऐसा कहना मुर्खतापूर्ण है । वहाँ जीवन विद्यमान है । डॉ० सिंह--वैज्ञानिक कहते हैं कि चंद्रमा पर जीवन नहीं है क्योंकि उन्हें वहाँ एक भी जीव नहीं मिला । शील प्रभुपाद--वे ऐसा विश्वास ही क्यों कंरते हैं ? चंद्रमा ग्रह धूल से ठढँका हुआ है किंतु उस धूल में भी जीवधारी रह सकते हैं। जीव के लिए प्रत्येक वातावरण भनुकूल है--कोई भी वातावरण । इसीलिए वेद जीवधारियों को . सर्वेगतः के रूप में वाणित करते हैं जिसका भर्थ है यह सभी परिस्थितियों में अस्तित्व रखने वाला । जीवधारी पदार्थ नहीं है । यद्यपि वह शरीर रूपी पिजरे में बंद है फिर भी वह पदार्थ नहीं है । कितु जब हम लोग विभिन्न ष्
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