अपराजितेश्वर शतक | Aparajiteshwar Shatak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(ই) निस्प्द लोकोपकारी परम वीतरागी निःशङ्क अहिसाके पककेःउप्रा- सक, सिंहबृत्ति, अध्यात्मरत तथा चन्द्रमा के समान शान्तिदायक सुख शान्ति का सन्देश देना ही जिनका व्यवसाय है वे मुनीश्वर जिस समय विहार करते थे उस समय जनसाधारण का चारित्र ओर श्रद्धान बड़ा द्दी उज्ज्वल था। जनता सुखी थी। ऐसे द्वी परमोपकारी साधुओं द्वारा जो उत्तम अन्थ रत्नों को निर्माण हुआ उसके फल्त स्वरूप विविध विषयों पर अन्थ-रचनाएँ हुई! । इसलिए- आध्यात्मिक, सैद्धान्तिक, दर्शन, विज्ञान, घम-शास्त्र, आचार पुराण, चारित्र, इतिहास, भूगोल, वैद्यक, ज्योतिष, गणित, छंद, अलक्कार, कोष, यन्त्र-तन्त्र, प्रतिष्ठा, आयुर्वेद, अष्टाज्, रस, राज- नीति व्यवहार भक्ति, स्तुति, जीवशास्त्र, पशुजात, वनस्पत्ति,यात्रा सम्बन्धी विशाल साहित्य विविध शैलियों से तैयार किया गया | सन्दर गद, पय, चम्पू गीति प्रबन्ध, सुक्तक, महाकाव्य के रूपें वीरवांसी चित्तको श्राह्वादकासी होकर अन्तस्वलमें प्त्रेश कर इसी पवित्र भावना से विशालवाङ्मय का निर्माण किया गया । इस पवित्र सात्यके फलस्वरूप जेनों का यश, वैभव शिक्षा सस्क्ृति गौरव वीरता आदि सभी वृद्धि को प्राप्त हुई ।. लेकिन आज हमारा ध्यान उस साहित्यकी ओर से हटता जाता है। दक्षिणी भारत का 'विशाल साहित्य मंदिरों के सरस्वती भवनोंमें ओर उपाध्यायों के घरोंमें बिखरा हुआ है। इसका-संभह ` चमर नवीन ठग से प्रकाशित होने की अत्यन्त आवश्यकता “है । सेकं वषमे प्रकाश अर धूप का सम्पक नं :मिलंने के;करारण




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