जैनसाहित्य पर और इतिहास पर विषद प्रकाश | Jain Sahitya Aur Etihas par vishad prakash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
748
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)হজ অনিদ্রা - =
भ० सहावीर और उनका समय ३
गी जर्मन
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लिए उर्होने बड़ी भक्तिसे भ्रपका नाम सन्मति रक्वा ® । दूसरी यह कि, एक
दिन आप बहुतसे राजकुमारोके साथ वनमें वृक्षक्रीडा कर रहै थे, इतनेमें वहाँ
पर एक महाभयंकर और विशालकाय सर्प श्रा निकला और उस वृक्षको ही मूलसे
लेकर स्कंघ॒पयन्त॒बेदृकर स्थित हो गया जिस पर आप चढ़े हुए थे। उसके
विकराब रूपको देखकर दूसरे राजकुमार भयविह्लल हो गये और उसी दशामें
वृक्षों परसे गिरकर अथवा कूद कर अपने अपने घरको भाग गये । परन्तु आपके
हृदयमें ज़रा भी भयका संचार नहीं हुग्रा-भ्राप बिलकुल निभंयचित्त होकर उस
काले नागसे ही क्रीडा करने लगे श्रौर श्रापने उस पर सवार होकर अपने बल तथा
पराक्रमसे उसे खूब ही धरमाया, फिराया तथा निमेद कर दिया । उसी वक्तसे ्राप
सोके महावीरः नामसे प्रसिद्ध हुए । इन दोनों घटनाश्रपे. यह स्पष्ट जाना जाता
है कि महावीरमें बाल्यकालसे ही बुद्धि ग्रौर शक्तिका असाधाररा विकास हो रहा
था और इस प्रकारकी घटनाएं उनके भावी अ्रसाघारण व्यकित्वको सूचित करती
थीं। सो ठीक ही है--
“होनहार विरवानके होत चीकने पात ।'
प्राय: तीस वर्षकी अवस्था हो जाने पर महावीर संसार-देहभोगोंसे पूर्णोतया
विरक्त हो गये, उन्हें अपने आत्मोत्कष्को साधने और अपना अन्तिम 5?য সাল
करनेकी ही नहीं किन्तु संसारके जीत्रोंकी सन्मागंमें लगाने श्रथवा उनकी सच्ची
सेवा बजानेकी एक विशेष लगन लगी--दीन दुखियोंकी पुकार उनके हृदयमें घर
कर गई--ग्रौर इसलिये उन्होंने, अब और भ्रधिक समय तक ग्रहवासको उचित न
सममकर, जंगल का रास्ता लिया, संपूर्ण राज्यवैमवको ठुकरा दिया और इन्द्रिय-
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ॐ संजयस्याथंसं देहे संजाते विजयस्य च ।
जन्मानन्तरमेवनमस्येत्यालोकमात्रतः ॥
तत्संदेहगते ताम्यां चारणाम्यां स्वभक्तितः ।
भस्त्वेष सन्मतिदेवो मावौति समुदाहृतः ॥
-महापुराण, पर्व ७४वाँ
¶ इनमेते प्रहली घटनाकां उल्लेख प्राय: दिगम्बर ग्रन्थोंमें और दूसरोका
दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनो ही सम्प्रदायके अरन्थोमें बहुलतासे पाया जता है ।
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