महिला - मण्डल | Mahila-mandal

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Mahila-mandal by श्री बैजनाथ केडिया - Shri Baijnath Kedia

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहली बेठक देनेका प्रयत्न किया पर उस समय परिजनोंके वियोगके कॉरण मेरा हृदय पानीके रूपमें बरबस आंखोंसे उमड़ा पड़ रहा था । इसी तरह रोते-रोते जब मेरा हृदय कुछ दलका हुआ अपने कतंब्यकी ओर ध्यान गया तब मैंने सोचा-- यह तो भगवानकी रचना है । माताके गर्भसे विवाद पर्यन्त तो वही मेरा घर था । अब बिवाहके बाद जहाँ पतिदेव रहें बहीं घर बनाना होगा । उन्होंने कई बार मुन्हे शान्त करनेकी चेष्टा की थी पर उस समय मैं चुप न हो सकी । अब मुझे शान्त देखकर उन्होंने कुछ बातचीतका लिल- खिला झारस्भ किया । उनका उद श्य मेरा ध्यान घरकी ओरसे हटाकर किसी अन्य बविषयमें लगा देनेका था । कुछ देरकी बातयीतसे उन्हें इसमें सफलता मिल गयी । सखुराढ पहुं चनेतक में बहुत कुछ सम्मढ गयी थी तथा मुक्ते किस तरह रहना चाहिये इस विषयमें भी भली - भाँति विचार कर चुकी थी । जब में अपने नये घरमें पहुँची तब सारे घरकी टरष्टि मेरी ओर ही लगी हुई थी। साताजी सासजी अन्य महिलाओं के साथ दमलोगोंकी अगवानीके लिये द्वारपर ही उपस्थित थीं । बड़े प्रेमसे उन्होंने हमलोगोंका यूदद-प्रचेश कराया । मेंते उनके तथा रु




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