द्रव्य संग्रह | Dravya Sangrah

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Book Image : द्रव्य संग्रह    - Dravya Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ७ ] वण्ण रस पंच गधा दो फासा अहाणिच्छयाजीवे । णो संति मुत्ति तदो ववहारा मुत्ति बंधा दो ॥५॥ अर्थ-निश्चय से जीव मै पांच वणे, पांच रस, दो गेध, आट स्पचे यह २० गुण नहीं हैं इसलिये जीव अमृर्तीक ही हैं परन्तु बंध के कारण व्यवहार नय से जीव मूर्तीक है । भावार्थ-वह ही पदाथ मूर्ताक कहाता है निम बणे, रस, गंष ओर स्पश हो | व्णे पांच प्रकार का है। सुफेद, नीछा, पीछा, छाल ओर काला । रस भी पांच प्रकार का है | चरपरा, कड़वा, कपायला, खट्दा ओर मीठा | गंध दो प्रकार का है सुगंध और दुर्गव | स्पशे आठ प्रकार का है |ठंडा, गरम, चिकना, रुखा, मुलायम, कठोर, मारी भर हल्का । লিল वस्तु म उपरोक्त बात न हा वह अमर्तीकि है रूप, रस, गंध और स्प पदुछ पदाथ में ही होते हैं इस हेतु पहुल द्रव्य ही मूरनीक है पद्ररके सिवाय ओर कोई वस्तु मृर्तीक नहीं है । आर नव भी मूर्तीक नहीं है अथात अमूर्तीक है । परन्तु संसारी जीव कम बंधन में बंधा हआ है | कम पदक है अथीत मूरतीक हे । कम जीव के साथ सम्मिलित हो रहें हं इस हेतु संस्तारी जीव को मूर्तीक भी कह सक्ते है । जसा कि जल श्त हे परन्त्‌ अभि पर तपाने से अभि के परमाण जरू में सम्मिलित हो जाते हैं ओर गरम हाकर जछ भी भ्षप्मि की भांति गरम कहढाने ठगता है। সখি ক ৪২ पुग्गलकम्मादीणं कत्ता ववहारदोदु णिच्छयदो । $ चेद्णकम्भाणादा सुद्धणया सुद्धभावाणम्‌ ॥ ८ ॥ अरथे-व्यवहार नय से आत्मा पृद्ठलकम आदि का कर्ता है निश्रय नय से चतनकम का करने वाला है ओर शुद्ध नय से शुद्ध भावों का करने बाला है| भावाथ--राग हष भादिकं भाव आत्मा का निन भाव नहीं है इस कारण यदि आत्मा का शुद्ध स्वभाव वणन क्रिया जावे ता वह राग, हप, अथोत मान, माया, ভীম ओर कराध आद्रिक क्विस्ती मी भाव का करने वाठा नहीं है बरण केवल ज्ञान सर केवर दशन से सर्व वस्तौ को बिना राग हेष फे देखने जानने वारा है हर) भामा क शुद्ध भाव है-यह शुद्ध निश्चय नय का कथन कहलाता है।




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