विनोबा की ज्ञान - गंगा में | Vinoba Ki Gyan - Ganga Mai

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Vinoba Ki Gyan - Ganga Mai by डॉ ज्ञानवती दरबार - Dr. Gyanvati Darbar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ {2 ने कहा था-- कई माताएं भी ऐसी होती हैं।” उन्होंने यह भी कहा, बच्चों को भी अपने पूर्व-जन्म के अनुसार वैसे माता-पिता मिलते हैं ।” उनकी मां ने नियमित रूप से तुलसी में पानी देने का आग्रह रक्खा, जिससे इन्हें मक्तिभाव मिखा । वस्तुतः वच्चे के चरित्र-निर्माण मे माता का कितना वड़ा हाथ हौता है, यह मैंने इस एक छोटी-सी बात से ही देखा और इस तरह संत विनोबा ने बचपन में ही भक्ति का अमृत-पान किया । अनण में रुचि वचपन से ही विनोवा को घूमने-फिरने का अत्यधिक शौक रहा । वाल्यावस्था मे अपने गांव के आस-पास की पहाडियां, खेत, नदी-नाले आदि कोई ऐसा स्थान न था, जहां वह अनेक बार न जा चुके हों । वह अकेले ही नहीं घूमते थे, संग में अपने बालसाथियों को भी खींच-खींचकर घूमने ले जाया करते थे। किसी भी विद्यार्थी को पुस्तक में माथापच्ची करते देख उन्हें दया आती और वहु उससे पुस्तक छीनकर उसे खुली हवा में घूमने ले जाते । अद्भुत विद्यार्थी पाठ्यक्रम की पुस्तकों के बजाय बारूक विनोबा को आध्यात्मिक पुस्तकों के अध्ययन का अधिक शौक था । तुकाराम-गाथा, ज्ञानेश्वरी, दासबोध, ब्रह्मसूत्र शांकरभाष्य, गीता आदि को न मालम कितनी बार उन्होंने पढ़ा होगा, पर इन पुस्तकों का अध्ययन करते हुए भी स्कूल में किसी विद्यार्थी से पीछे न थे। स्कूल में आखिरी बेंच पर बैठने की उनकी खास आदत थी और वह सिर्फ इसलिए कि जब भी जी चाहे, उठकर आसानी से बाहर जा सकें । जितनी भी देर वह क्लास में बैठते, ऐसा स्थान चुनकर बैठते थे, जहां से बाहर का स्वच्छ आकाश आसानी से दिखाई देता रहे । जब विनोबा पांचवीं-छठी क्लास में थे तो सहपाठी उनके घर सीखने आया करते थे; पर बाद में उनकी बुद्धिमत्ता तथा शिक्षण-शैली का प्रभाव अन्य विद्यार्थियों पर इतना पड़ा कि उनसे ऊंची क्लास के विद्यार्थी भी उनके पास सीखने और पढ़ने आने लगे। यहां तक कि कई बार तो स्वयं




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