आधुनिक कवियों की काव्य साधना | Aadhunik Kaviyo Ki Kavya Sadhna
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
356
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतेन्दु दरिश्चन्ध ७
“अंगरेजी रंग चढ़ने लगा । इस प्रकार निराशा के उस युग में अपना धर्म
अपनी संध्कृति और श्रपनी सभ्यता पर सिहावलोकन करने का अवकाश ही
हमारे लिए नदीं था ।
हिन्दू.समाज की दशा तो और मी शोचनीय थी। अ्रठारदवीं शताब्दी
में हिन्दुओं ने अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए एक बार मरपूर चेष्टा
की, पर अपनी इस चेप्टा में उन्हें आंशिक सफलता ही मिली। ऐसी दशा
में उन्होंने अँगरेजों की सत्ता का स्वागत किया। इस स्वागत-सम्मान में हिन्दू
व्यापारी, अत्यन्त दरिदि और अरक्तित लोग ही सम्मिलित ये। उच्च और
सैनिक वर्ग अँगरेजी-सत्ता के विरुद्ध थे। वास्तव में १८४७ का राजनीतिक
' ज्वार उन्हीं के प्रयत्तों का परिणाम था, पर जब वह शन्त दौ गया तव
समस्त हिन्दू-नाति एक बार फिर शिथिल हो गयी।- बार-बार की पराजय
से-उनका अपने धर्म पर से विश्वास हट गया। वह नास्तिक हो चली,
पाखंड का बोल-बाला हो गया। भाँति-भाँति की कुरीतियाँ हिन्दू-समाज
मे घुस आयीं। हिन्दू-समान खोखला होने-लगा-। ऐसे खोखले-समाज का
साहित्य भी खोखला ही-था।
ओरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् भारत की राजनीतिक परिस्थितियाँ ऐसी
बेढंगी रहीं -कि : हमें उन्नीसवीं शत्ताव्दी के: पूर्वाद/ तक हिन्दी का कोई
-सत्साहित्य ही नहीं मिलता+। हमारा तो अनुमान - है कि देव के पश्चात्
हिन्दी-साहित्य-क्षेत्र में लगभग एक, शताब्दी तक कोई प्रतिभाशाली कवि
জনন হী नहीं हु्रा। इस दीघ॑ अ्रवधि में जो कवि हुए भीवे नया, तो
तुकड़ थे या -रीति-कालीन परम्परा के-अ्रन्धमक्त 1 जीवन को उठाने के लिए
“उनकी स्वनाओं में कोई योजना ही नहीं थी। ऐसी दशा में- हिन्दुओं ,की
श्रधोगत संस्कृति और सम्यता के साथ-साथ उनका साहित्य भी खतरे में
था। १८५७ की- महा क्रान्ति- समाप्त होने, पर जब अंग्रेजी शासन का
प्रादुभाव हुआ तब कचहरियों में उदू- भाषा का ही बोलवाला- रहा । हिन्दी
गद्य की रूपरेखा. उस समय तक निश्चित ही - नहीं हुई थी । इसलिए कच-
हरियों में उसे स्थान मिलना कठिन था | काव्य-क्षेत्र में तो मनमानौ-बरजानी
हो रही -थी-।- काव्य का जीवन के साथ कोई सम्बन्ध, ही नहीं रह
का० सा० २
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