अंधा छत्रपति | Andha Chhatrapati

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Book Image : अंधा छत्रपति  - Andha Chhatrapati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फांसी के तस्ते प्र ११ बिजली की टेढ़ी लकीर की तरद्द मेरी श्राष्मा को चीरती हुईं निकल गईं । मैंने अपनी आंखों से अपने आप को मरते देखा, अपने घर्म को मिद्दी में मिलते देखा, अपनो सभ्यता को, सनुप्यता को फूस की অহ जल्ते देखा । वह सभ्यता, वह मनुप्यता, जिसने खून का बदला खून से लेना चाहा है, कभी पनप नहीं सकती, कभी उठ नहीं सकती, कभी जिन्दा नहीं रह सकती । शिरोज की सूरत याद नहीं रही, लेकिन याद के हर कोने में फांसी का एक तख्ता देखता हूँ, जिस पर एक सफेद कपड़ों में ढकी सूरत देखता हुँ । उस का चेहरा गिल्ञाफ़ के अन्दर है और उसकी बांद पीछे वंघी हुई हैं। जय भी अकेला द्ोता हूँ यद चित्र मेरे सामने थ्रा जाता है। और एक घुपसा ताना बनकर मुझ से पूछता है “झुमे जानते हो, में इन्सान हूँ, भले-बुरे का पुतला, आदि-अन्त पुरुष। तुम ने मुझे एक रेशमी डोरी से ন্ট छूए' में लटका रखा है। ग्या सुकते कभी इससे मुक्ति नहीं मिलेगी ?”? |




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