नीति धर्म दर्शन | Neeti Dharm Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बन १ ७ ~ अपने राजर्नतिक व्यवहार मे किया । इय अर्थ मे गावी यत्मवट-मम्पन्न अन्यात्म- वीर्‌ ध्र] अब रहा दार्भनिक गाती। गाबी तत्त्वदर्णी के अर्थ में तो दाशनिक थे, ठेकित तत्त्ववादी के अर्थ में नहीं। उन्हाने अपने किसी विशिष्ट सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं क्रिया। किसी तत्त्वज्ञान फे प्रवर्तत का दावा नहीं फ्रिया। एक कवि ने कहा हैं कि पुराने सारे थम जपनी टिमटिमाती हुई मोमवत्तियाँ छेफ़र अकठ दिखाने लगे। उधर से तगदा सत्य जाया। एक अकोरे में सारी मोमवत्तिया वृझ्ञ गयी। গল নন को गावी ने पका था। उसलिए उनका धर्म व्यवहारमय था, व्यवहार धर्ममय था और दोनों सत्याभिमुख थे। यही गावी का दर्जन हे अर्थात्‌ उसकी जीवन-निप्ठा । मैं एक ऐसे विभूतिमत्‌सत्त्व की मीमासा करने के छिण उद्यत हृजा ज निरन्तर नवनवोन्मप प्रकट करता गहा । मेरी अत्पदृप्टि में गाथी के जैस दर्णन हुए उनका निरूपण मैंने यथामति किया है। হাতত ভাতল, जबलपुर। “-दादा धर्माषिकारी २५-११-१९६६




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