भारतीय संस्कृत की रूप रेखा | Bhartiya Sanskrit Ki roop Rekha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पा गा पाए संस्कृतियों का सम्मिश्रण २३ है । उनकी भक्ति में जाति-पांति का बन्धन नहीं है वह सबके लिये सुलभ हैं । जाति-पांति के बन्धन जो बीच मे खड़े हो गये थे, उनम बेष्णव लोग कछ चौथिल्य ले भ्राये । महात्मा गांधी का प्रिय गीत. जिसके रचयिता नरसी महता हैं, वैष्णवी मनोवृति का अच्छा दिग्ददान कराता है । वेष्णव जन तो तेने कहिये जे पीड़ पराई जाणे रे, पर दू:खे उपकार करे तो ये मन श्रभिमान न. झ्राणे रे । सकल लोक मां सहुने बन्दे, निन्दां न करे केनी रे । इस प्रकार वैष्णव भावना, भक्ति से भर पूर श्ौर सेवा-परायण थी केवल शान्त लोग ही पदु बलि के समथक हू । स्यलसानों की देनः--मसलमान लोगों ने भी भारतीय संस्कृति पर प्रपना छाप छोड़ी, किन्तु प्रायः ऊपरी बातों पर । सुसलिम संस्कृति नें म्तिपूजा को ठेस पहुंचाई । उनका काय विध्वंसात्मक रहा । कबीर से लगा कर स्वामी दयानन्द, तथा राजा राममोहन . श्रादि नें जो मूर्तिपूजा का विरोध किया. उसमें विध्वंसक प्रभाव की अपेक्षा सुधारक प्रभाव अधिक था । मसलसानी साम्राज्य के साथ एक सम्मिलित व्यापक राज-भाषा का प्रचार हुझ्ना । प्रात्तीय भाषाश्ों को विशेष कर हिन्दी को भी प्रोत्साहन मिला । प्रारम्भ में हिन्दी उर्दू में विशेष भेद न था । भारत में चाहे पहले पर्दा का कोई रूप रहा हो स्त्रियां मुंह पर श्रव- गण्ठन डाल. कर निकलती हों श्रौर राज घराने की स्त्रियां चाहें भ्रसूयं पदया रही हों, किन्तु पढें का प्रचार जसां मुसलमानों समय मे हुमा बैसा कभी नहीं हुमा । इससे भारतीय जीवन .विक्षेषकर नारी -जीवन पर . बहुत प्रभाव पड़ा । सम; मसलमौनी प्रभाव से जहां दहरी शिष्टाचार बढ़ा वहां शहरी बिला- . ६ 4576८,




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