भारत का नवीन इतिहास | Bhaarat Kaa Naviin Itihaas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
52 MB
कुल पष्ठ :
587
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
एल. पी. वैश्य - L. P. Vaishy
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हरिशंकर शर्मा - Harishankar Sharma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand) भौगोलिक व सामाजिक पृष्ठभूमि” খু
एकसा चला आ रहा है | विभिन्न भाषाओं की वर्णमाला यहाँ एकसी है। মানা নিবান
के विद्वानों ने इन भाषाओं की व्युप्ति अधिकतर एक ही आधार से की है | यहाँ की
विभिन्न जातियों पर भारतीयता की अ्रमिव छाप अकित है। रिज़ले महोदय ने उचित
ही कहा है, “भारत में दर्शन को भोतिक क्षेत्र में और सामाजिक रूप में भाषा, आचार
आर धर्म में जो विविधता दिखाई देती है, उसकी वह मेँ हिमालय से कन्या कुमारी तक
एक आन्न्तरिक एकता है |”
प्रो० हरिदत्त वेदालंकार ने मारत की एकता बतलाते हुए. लिखा है, “यह एकता
प्रधानतः संस्कृति के प्रसार से प्रादुभू त हुई और प्राचीन काल से उसे समूचे देश की
विभिन्न जातियों को एक सूत्र में पिरोने में सफलता मिली । पंजाब्रो, बंगाली ओर मद्रासी
आकार रूप-रंग, भाषा आदि में सब्र प्रकार से भिन्न हैं किन्तु आन्तरिक रूप से एक हैं ।
थे एक ही हिन्दू धर्म के अनुयायी हैं। उनके आदर्श पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम
ओर श्री कृष्ण एक से हैं। वे समान रूप से उपनिषद् धर्-शास्त्र, गीता, रामायण
ओर महाभारत, वेद, पुराण और ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा करते हैं। गो, गंगा, गायत्री
सर्वत्र पवित्र मानी जाती हैं | शिव, विष्णु, दुर्गा आंद पुराण प्रतिपादित देवी-देवताओं
की सभी पूजा करते हैं। सारे देश में हिन्दुओं के पवित्र तीर्थ फैले हुये हैं। चारों
दिशाओं के चारों धाम, उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण मेँ रामेश्वरम्, पूर्वं मे जगन्नाथपुरी,
ক্সীহ पच्छिम मेँ द्वारेकापुरी, मारत की सांस्कृतिक एकता ओर शअखरुडता के पुष्ट
प्रमाण हैं। मोक्ष प्रदान करने वाली पवित्रं परियां, त्रयोध्या, मथुरा, काशी, कांची
ओर श्रवन्ती सारे देश मँ ब्रिरी हुई है । प्राचीन काल से हिन्दू, गंगा, यमुना, सरस्वती,
नमंदा, सिन्धु श्रौर कावेरी को पूज्य मानते आये हैं। समूचे देश का सामाजिक संस्थान
लगभग एकसा है; सब्र जगह वैदिक संस्कार और अनुष्ठान प्रचलित हैं; सर्वत्र जाति-
भेद, वर्ण-व्यवस्था छूतछात का विचार समान रूप से माना जाता है। सारे भारत में
रामायण और महाभारत की कथाएे बड़े भाव से छुनी जाती हैं । पुराने जमाने में समूचे
देश के विद्वत् समाज को एक सूत्र में पिरोने का काम पहले संस्कृत और फिर प्राकृृत ने
किया, भविष्य में यह कार्य हिन्दी से पूरा होगा।
इस प्रकार हम इस निष्कर्र पर पहुँचते हैं कि भारतीय संस्कृति के विस्तार में
जितना अधिक यहाँ की मोगोलिक स्थिति का प्रभाव पड़ा है, सम्भवत; ओर देशों में
हतना नहीं पड़ा है।
अध्ययन के लिये संकेत
( १) विष्णु पुरोण में भारत को 'भरतखण्ड' कहां है ।
(২) भारत का क्षेत्रफल ब्रिटेन से बीस गुना है ।
{ 2 ) भाग लताएं पं निद हवित गेन येज कसक পা दिक क द $
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