कुवलय मालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन | Kuvalayamalakaha Ka Sanskritika Adhyayana

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Kuvalayamalakaha Ka Sanskritika Adhyayana by प्रेम सुमन जैन - Prem Suman Jain

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Professor  (Dr.)  Prem   Suman   Jain  D. Lit. ,  UDAIPUR

            Born at Sinundi in Jabalpur Distt. in Madhya Pradesh on 1st August, 1942. Professor (Dr.) Prem Suman Jain is an eminent Prakrit Scholar and Jainologist by his commendable literary and research contribution. Dr. Jain retired as the Professor and Head of the Department of Jainology and Prakrit from M.L. Sukhadia University, Udaipur after over 30 years of service. He was also Dean, faculty of Arts and Dean Student Welfare in the University.

Dr. Jain has  also served as Director and holding the Professor and H.O.D. Post in the D

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ १६ ) (चदय ) एवं पैशाचो । द्रविण भाषा, दक्षिण भारत की भाषा, राक्षसी एवं मिश्र भाषा, देशी भापा आदि । इत सबके स्वरूप आदि पर विचार । श्रन्थ के प्रमृख कथोपकथन --ग्राम-मट्रारकों, कोढ़ियों, ग्रास-महत्तरों एवं पिशाचों की बातचीत, १८ देझ्ों के व्यापारियों की भाषा, मठ के छात्रों की बातचीत । इन सब में प्रयुक्त विभिन्न भाषाएँ एवं बोलियाँ । परिच्छेद ३. शब्द-सम्पत्ति ( २६२-२६९ ) कुबलयमाला की शब्द-सम्पत्ति--लगभग २५० विशिष्ट शब्दों के मर्थ, शब्दकोष निर्माण के लिये उपयोगी । प्रध्याय छह : : ललितकलाएँ शोर शिल्प २७१-३४० परिच्छेद १. नाटचकना ( २७३-२८२) कु० में नाट्यकला से सम्बन्धित विशिष्ट शब्दों का भरयोग- नृत्त, लास्यनृत्त, ताण्डवनृत्त--मूंडमाला घारण कर, तिनेत्र को खोलकर अट्ृहास करते हुए नृत्त करना । नृत्य ओौर नृत्त में भेद । कु० में नृत्य के उल्लेख । नाट्य--भरतशास्त्र में प्रवीण भरतपुत्र, नटों की वेशभूषा, रसाश्नित नाठय । लोकनाव्य--उद्योतन द्वारा लोकनाट्य का विशेष उल्लेख । नट भौर नटी द्वारा अभिनय, श्ज्भ।रिक प्रदर्शन तथा प्रदर्शन के लिए रंगमंच की व्यवस्था । आधुनिक 'मवाईनाट्य' से इस प्रसंग की तुलना । लोकनाटा के अन्थकार-रासमण्डनी, डॉडियां- नृत्य, चर्चरीनृत्य, भाण, डोम०लिक एवं सिग्यडाइय । नाद्य के साथ संगीत की संगत । परिच्छेद २. बादित्र ( १८३०२०३ ) वादित्रों की सास्कृतिक उपयोगिता, कु० में उल्लिखित २४ प्रकार के वादित्र । आतोच्य--वाद्यविशेष॑ एवं वादयसमुहों का वाचक, तूर- मांगलिकवाद्य एवं वादय समूहं का योत्तक । ततवाद्य- वीणा, वंसवीणा, त्रिरबर, नारद तुम्बरु-तन्त्री । अवनद्धवादच्य -- मृदंग, मुरज, पटु-परह, क्का, भेरी, स्ञन्लिरी एवं डमरूक । सुषिरवाद्य--वेणु, शंख, काहला । धनवाच--घंटा, ताल । कुठ अन्य वाद्य - गन्धर्व, तोडहिया नाद, मंगल, बज्जिर, वंग्वीसक, मन अदि ॥ परिच्छेद ३. चित्रकला { २९४-३०६ ) कु० में चित्रकला के पाँच प्रमंग। पटचित द्वारा संसार-दर्शन --५ २ प्रकार को आकृतियाँ। दो बणिकपुत्रो का कथात्मक चित्र -२० प्रकार को भआकृतियां। उज्जयिनी की राजकुमारों का चित्र-- ९ विज्येषताओं से युक्त। भिति-चित्र, पटचित्र--व्यक्तिगत एवं घामिक




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