भगवती सूत्र पर व्याख्यान भाग 4 | Shri Bhagwati Sutra Par Vyakhyan Vol-4

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Shri Bhagwati Sutra Par Vyakhyan  Vol-4 by पं. शोभाचंद्र जी भारिल्ल - Pt. Shobha Chandra JI Bharilla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[११३३] | ` सूर्याधिकार वाला का-४७२६२ योजन टर सं दखल देता ह 1 अन्यान्य मंडला में जब सय होता है, तब कितनी-कितनी दर से देखा - जा सकता हैं, इसका ।विशद वर्णन जम्बूद्वीप प्रश्षत्ति मं दिया : गया है। जिज्ञाखुआ को वहों देख लेना चाहिए। जव गोतम स्वामी ,पछुते इ--भगवन्‌ | उगता हुआ ভব जितने लम्बे-चोड़े, ऊँचे या गहरे क्षेत्र को प्रकाशित करता है, उद्योतित करता हैं, तपाता है ओर खूब तपाता हें, उशी तरह क्या इवता हुआ सूर्य भी उतने ही लम्बे, चोड़े, गहरे और ऊँचे तेत्र को प्रकाशत करता है ! उद्योतित करता है तपाता है ओर खूब तपाता है? अथवा कम-ज्यादा क्षेत्र को : इस प्रश्न के उत्तर में सगवान ने फर्माय।-डे मोतम | उगता हुआ स॒ जितने चेत्र को प्रकाशित भाषे करता है, उतने ছু च्ेत्र कों हवता हुआ सूर्य भी प्रकाशित करवा है, यी तक कि खूब तपाता है । इसमें अन्तर नहीं ই। फिर गोतस स्वासी पूछते हं-भगवन्‌ ! सूय जस त्तत्र को प्रकाशित करतो दे. उस चन्र को स्पशं करके प्रकाशित . करता है या विना स्पश किये ही प्रकाशित करता हैं ! भगवान्‌ फर्माते हँ-ह गौतम ! उस क्षित्र की छुद्दों. दिशाओं को स्पशे करके प्रकाशित करता है । इसी प्रकार छुददा दिशाओं को स्पश करके दी डउद्घोतित करता है, तपाता हे झोर प्रभाशित करता है। गातम स्वामी फिर সহল কলি ই- সম! জব ছল को जब स्पशे करने लगा, तव 'चलमाणे चलिए! इस सिद्धान्त के अनुसार स्पश [कया पसा कदा जा सकता ह `? भगवान्‌ फर्मात हूं हू, गातस ऐसा कटद्दा जा सकता दे ।




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