कनुप्रिया | Kanupriya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.05 MB
कुल पष्ठ :
78
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पाँचवाँ गीत यह जो मैं गुहकाज से अलसाकर अक्सर इधर चली आती हूँ और कदम्ब की छाँह में शिथिल अस्तव्यस्त अनमनी-सी पडी रहती हूँ यह पछतावा अब मुझे हर क्षण सालता रहता है कि मैं उस रास की रात तुम्हारे पास से लौट क्यों आयी ? जो चरण तुम्हारे वेगवादन की लय पर तुम्हारे नील जलज तन की परिक्रमा देकर नाचते रहे वे फिर घर की ओर उठ कंसे पाये मै उस दिन लौटी क्यों कण-कण अपने को तुम्हें देकर रीत क्यों नही गयी ? तुमने तो उस रास की रात जिसे अंशत भी आत्मसात् किया उसे सम्पूर्ण बनाकर वापस अपने-अपने घर भेज दिया पर हाय वह सम्पुर्णता तो इस जिस्म के एक-एक कण में वराबर टीसती रहती है तुम्हारे लिए कैसे हो जी तुम ? .१७ / पुर्वराग
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