वक-संहार | Vak-sanhaar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वक-सहार २६ | में सुत-सुता भी जन चुकी, कुल-बर्धिनी हूँ बन चुकी। मेरे बिना अव हानि क्या संसार की ? इस हेत जने दो सुभे, यह पुण्य पाने दो জুল” जिससे कि रक्षा हो सके परिवार की । [ २७ ] मे एक तुम मे रत यथा, तुम एक पत्नीत्रत तथा । में जानती हूँ, तुम कहो न कहो इसे । पर तुम पुरुष हो, धीर हो, ज्ञानो, गुणी, गम्भीर | | तुम सह सकोगे मै न सह सकती जिसे ! १६




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