वक-संहार | Vak-sanhaar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vak-sanhaar by मैथिलीशरण गुप्त - Maithilisharan Gupt

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मैथिलीशरण गुप्त - Maithilisharan Gupt

Add Infomation AboutMaithilisharan Gupt

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
वक-सहार २६ | में सुत-सुता भी जन चुकी, कुल-बर्धिनी हूँ बन चुकी। मेरे बिना अव हानि क्या संसार की ? इस हेत जने दो सुभे, यह पुण्य पाने दो জুল” जिससे कि रक्षा हो सके परिवार की । [ २७ ] मे एक तुम मे रत यथा, तुम एक पत्नीत्रत तथा । में जानती हूँ, तुम कहो न कहो इसे । पर तुम पुरुष हो, धीर हो, ज्ञानो, गुणी, गम्भीर | | तुम सह सकोगे मै न सह सकती जिसे ! १६




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now