विभिन्न धर्मो में ईश्वर कल्पना | Vibhinn Dharmon Me Ishwar Kalpana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १० ) अव इनके साथ-साथ वेविलोनिया के हर नगर का एक नगरदेवता था 0 उससूवेकेसारेतोग उसौकी पुजा करतेथे। अव हरं नगर मेँ एक-एक अलग पुरोहित-बंश का उदय हुआ । अब हर पुरोहितं अपने देवता की श्रेष्ठता प्रमाणित करने के लिए सब तरह के उपाय अपनाता। अपनी मंत्र उपासना- पद्धतियाँ गुप्त रखता | और, यही कहता कि 'दिवताओं में देवता तो सिर्फ मेरा ही नगरदेवता है; वाकी इतने योग्य नहीं हैं । सबसे मजे की बात तो यह थी कि इनमें आपस में वड़ा 'शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व' था। कोई वैर-बैमनस्य नहीं होता था। वर्योकि, तबतक नगरों में स्पर्डा नहीं थी। ज्यों ज्यों नगर समृद्ध और शक्तिशाली होते गए, ग्राम-देवता भी बने रहे। नगर-देवता उन वे हो गए, और शायद महानगर-देवता उनसे भी बड़े ! जब एक विजेता दूसरे नगर को जीतता, तो विजित नगर-देवता को भी पूजा और चढ़ावा चढ़ाता, ताकि वहाँ के नागरिक लोगों का विश्वास प्राप्त कर सके। विजेता अपना धर्म भी सुरक्षित रखते और दूसरों का भी। इस प्रकार, जब वैविलोन-वो राक्षप्पा ने वैबिलोनिया पर राज्य किया, तव एक साथ वे मटुक [ सूर्यदेवता ) और नेग्नो ( विद्यानदेवता ) दोनों नगर-देवताओं की पूजा करते थे । जब ऊर नगर का आधिपत्य वदा, तव उसका देवता “सिन ( चंद्र-देवता ) सव पर छा गया। इस प्रकार, बैविलोनिया में प्राकृतिक शक्ति के देवता का नाम चाहे बदलता रहे, उसके गुण बराबर वही बने रहते थे । उसमें कोई अंतर नहीं पडता था । इसलिए, इन देवताओं की वंशावलियों मे कई मनोरजक परस्पर विरोध मिलते है। एक ही देवी दो अलग-अलग देवताओं कौ पुत्री वताई गई है, और वह भी एक ही शिलालेख में । वेलित देवी कहती है, “बेल की पुत्री मैं हूँ। सिन की पुत्री मैं हूँ । मैं सब देवताओं में श्रेःठ हूँ ।” मुख्य बात यह है कि वह सब देवताओं में श्रेष्ठ है। एक ओर इससे यह पता चलता है कि बैविलोनिया के पुरोहितजन इस वात की परवाह नहीं करते थे कि उनके देवी-देवता ॐ वंश क्या हैं, वहीं दूसरी ओर अंततः सब देवों के भीतर अनुस्यूत एक ही देवी तत्त निहित है, इसमें उनका विश्वास पवका था। नाम-छूप के . भेद में क्या रखा है : सबहि ब्रह्ममय जानि । असीरिया के लोगों ने 'असुर' नामक एक दैवी केंद्रीय शक्ति या देवता के रूप में एकेदवरवाद का वीजारोपण किया 1 असुर' किसी प्राकृतिक रक्तिका




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