भारतीय ज्ञानपीठ मूर्तिदेव जैन ग्रन्थमाला | Bhartiya Gyanpeeth Murtidev Jain Granthmala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कैलाशचंद्र शास्त्री - Kailashchandra Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावेन - 8
` . पन्ने ४८ हँ 1 चत्ता, कडवक संख्या और समाप्ति वतानेके लिए खुरः स्याहीका प्रयोग है। लिखावट स्वच्छ
. और स्पष्ट । सम्पादकके लिए उपलब्ध प्रतियों में यह सबसे बादकी प्रति ह ।
५ श्रीपाख्चरित कथाकी परम्परां
श्रीपाल की कथा 'सिद्धचक्र विधान” या “नवपद मण्डल'की पूजातिधिकौ फलश्रृतिसे सम्बद्ध हं ।
` श्रीपाकुपर आधारित पहली रचना प्राकृतमें 'श्रीपाल चरित्र है । डॉ. हीरालाल जैनने लिखा है--- रत्नशेखर
सूरि कृत “श्रीपाल चरित्र' में १३४२ गाथाएँ हैं, ,जिसका- प्रथम संकलन -वजसेनके पट्टशषिष्य प्रभु हेमतिकक
सूरिने किया और उनके शिष्य हेमचन्द्र सावुने वि, सं. १४२८.( ई. १३१७ ) में इसे लिपिवद्ध किया । यह
कथा 'सिद्धचक्र विवान' का माहात््य प्रंकट करनेके लिए लिखी गयी है । उज्जैनकी राजकुमारीने अपने पिताकी
दी हुई समस्याकी पृतिसें अपना यह भाव प्रकट किया कि प्रत्येकको अपने पुण्य-पापके अनुसार सुख-दुख प्राप्त
होता है । पिताने इमे अपने प्रति कृतघ्नताका माव समज्ञा और क्रुद्ध होकर मयनासुन्दरीका विवाह श्रीपाल
नामके कुष्ट रोगीसे कर दिया । मयनासुन्दरीने अपनी पतिभक्ति और सिद्धपूजाके प्रभावसे उसे अच्छा कर
लिया । श्रीपालते नाना देझ्षोंका भ्रमण किया तथा खूब वन मौर यडा कमाया । ` ग्रन्थके वीच~वीचमे मनेक
, अपश्रंश पद्य भी आये हँ गौर नाना छन्दोम स्तुतिर्या निवड हैं.1. रचना आदिसे अन्त तक रोचक है ।
इसके बाद अपश्रंशमें दो (सिर्विल चरिउ' उपलब्ध हैं । एक कवि रइव् कृत, जिसका सम्यादन डॉ
राजाराम जन, जारा कर् चुके हैं और जो शीत्र प्रकाश्य हैं । दूसरा पं. नरसेनका । रइवृका समय वि, सं.
१४५०-१५३६ ( ई, १३९३-१४७९ ) है । निर्चित ही नरसेन ,उसके वादके हैँ ।
श्रीपाल रास गुजराती भापामें: है | प्रारम्भमें छिखा है -- 'श्रीपालराजान: रास: 1 इसकी चौथी
. आवृत्ति अक्तूबर १९१० में हुई थी। प्रकाशक हैं भीमसिह माणक -- ---- 777 माण्डवी
शाकगली मब्ये । इसमें:कुछ चार खण्ड और ४१ छाले हैं। पहलेमें ११, दूसरेमें ८, .तीसरेमें ८ और चौथेमें
१४ । इसके मृल रचयिता हैं महोपाध्याय श्री कीतिविजय गणिके शिष्य श्री विनय विजय. गणि उपाध्याय ।
'उसीके आधारपर यह “श्रीपाकरू रास” रचा गया | यह वंस्तुत: श्री विनय. विजय कविके प्राकृतप्रवन्ध का
गुजराती अनुवादं हं । प्रारम्भने छिखा ह-- “श्री नवपद महिमा वर्णने श्रीपालराजानों रास: ॥”
स्व० नाथूराम जी प्रेमीनेदो श्रीपाल चरसि््ोका उल्लेख किया दह 1 भट्टारक मल्लिभूषणके शिष्य
' ब्र. नेभिदत्तते वि. सं. १५८५ में श्रीपार चरिजकी रचना की थी । दूसरे, भदटरारक वादिचन्द्रने वि. सं. १६५१
श्रीपार आख्यान! लिखा था। भाषा गुजराती मिश्रित हिन्दी है ।
पण्डित परिमल्लने हिन्दीमें श्रीपांछ चरित्र” लिखा था, जिसे वावू ज्ञानचन्द्रजी -लाहोरवालोंने
` १९०४ ई. मे प्रकारित किया । वादे 'दिगस्वर जेन भवन सूरतनें ई. १९६८ मेँ पुनः प्रकाशित किया।
अन्तिम प्रशस्तिर्में कवि कहता है--- ূ
` “गोप. गिरगदढ् ` उत्तम थान 1,
. श्रबीर जहाँ राजा मान ।।
ता आगे चन्दन चौधरी।1
कीरति सब जगमें विस्तरी 1
जाति वैश्य गुनह गंभीर।
अति प्रताप कुल रंजन घीर ॥
ता. सूत रामदास. प्रान ।
ता सुत अस्ति महा युर जान 1
२. भारतोय संस्कृतिर्मे जेनधर्मका योगदान, पृ, १४२
०. जैन साहित्य और इतिहास, पृ. ४९० |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...