बुढेमुँहमुंहासे | Budemuhmuhase
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
884 KB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४ )
[ सितावी का प्रवेश ]
ঘিনালী-_( घारोंभ्रोर देखकर ) धू घू ! सुम॒त्मान के घर
में आकर ऐ तो उलटी होय है। घू घु! सर्गा हे पड,
प्याज के छिलका । छि; छिः| पर कहा करू लाला
जाने कब ये पाप छोड़ेंगे । इतने बूढ़े हो गये पर श्रव
तक सन में ज्वान पहाही बने हैं 1 आज तीन घरस
से नोकरी करूँ हूँ इतने दिन में कितने भले घर की
वेह वटो, राइ, सुदागन, सनै खराव करी, कछू ठीक
नहों ( हँसकर ) फिर लाला भगत सो बड़े, दिन भर
साला हाथ सेद्धो रक्छे, सोसवारको एकादशी को
वत्ते करे । श्राद्ा! कैसी भक्तो} ( चिन्तारे) भला
जो भ्द सो भई, यह तो ठोक करं किया लुगाई की
कुछ बुरो भक्तो कर सकंगी कि नहीं | चेंना तेली छी
वेंटो से यह सब वात नहीं बनेगी वो गरीब জাক্রান্
को छोरी थोड़ेंह्ी है, जो रो चार रुपया देखकर ना-
चने लगे । और लाला ज्वान होते, तव भी कुछ वात
नहीं, नन्नो गुस्सा होती, तो हईंसो में बात ठाल देती.।
अच्छी देखूं यद्द कहा कहे। (ऊँचे ख़र से पुकारकर)
अरो छलन्नो , घर में है ?
1 লদভ से |
अरो कोन है ?
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