पाश्चात्य - चिकित्सा - सार | Paashchaatya Chikitsaa Saar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाध्यात्य-चिकित्सा-सार शक्ति 6७83. 80687006 को कम न होने दिया जाय। बल्कि जहाँ तक हो सके बढ़ाने का प्रयन्न करना चाहिए । ३ जीं पर तापमान बहुत ऊंचा हो और रोगी को बड़ा बेचैन कर रद्दा हो तो कम करने के उपायों का प्रयोग होना चाहिए । १ आज हमें अनेकों जवरों के कारणों का पता है । ओर साथ ही कई उवरों वाले इन रोगों में ऐसी औषधियों का भी पता है जो इनके कारणरूप जीवारणुओं इत्यादि पर विशेष नाशक प्रभाव रखती हैं। सो ऐसे ज्वरां में इन औपधियों का बतना कारणो दिए चिकित्सा होती है। जैसे कि विपस-ज्वर 5.7... &. में कुवीन का बतना। कुनीन विपम-उवर के पराश्रयियों को नए करती है । कुर्नीन साथ ही तापमान को भी कुछ कम करती है । पर कनीन का प्रयोग मय्य रूप से कारण- सम्बन्धी है. । ९ दभारा जवरघपिकित्सा का दूसरा उद्देश्य रोगी की शारीरिक शक्ति थीर शरीर की प्रतिशक्ति दोनों को कायम रखने का होता है । इस उद्देश्य की पूर्ति हम परिचर्या तथा पथ्य- सेवन सम्बन्धी आदेशों उपदेशों व निव्शों द्वारा करते हैं । क परिचयां सम्बन्धी निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए । 1 रोगी को शप्यारूड़ दोना चाहिए। उसे चलने फिरने से रोक दिया जाय । 11 रोगीय्रह का तापमान ६० और ६४५ डिमी फाहन्‌- द्ाइट के दमियान होना चाहिए । ८




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