कुण्डलिया रामायण | Kudaliya Ramayan

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Kudaliya Ramayan by तुलसीदास - Tulaseedas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्‍ कुण्डगिया गपाचणा | मड़्तमथों विचित्र बुलति प्रकट भद णद्ध आनि। ब्ह्म- सचिदानन्द उर प्रदट भये सुखखानि ॥ प्रकट भये सुखखानि हाति दारिद टख् हट देवन लयो अनन्द अद्दो मन प्रकाब्यो॥ मरी योद दम सकल सन्त सज्जन यश गावत । ब्रह्मा दिक शव देव चावब टपंचर चलि आवत ॥ चावत वणत सुमन घन तुलपो कड़े जब जय जे । नाफ नगर अदिएर भवन जल भई प्रकोट भ5 सत्णष मास भयों झुभवार योगवर नखत विधजत । तिथि नभ जज महि विनय देपा वविद्वणा सब ज्ाबत । आजत सरय अवध देवगण जय उद्यारत। वपत सुगन प्रशस हंस निजवेस ।नद् रम ४ द्वारत सतगण नगमधििभ प्रस्ट भये सुख दख गयो। कर कि कर च्ि ठुाामा रबर प्रकट भे शात् एकका ।दन था ॥ ६ ॥ जुनि भुपान पा भन्न मगच चढिद देह सभारत। उठे भवन बात र्दाः वीति छप गुउठदि प्रवारत ) युत्द्धि प्रचारत चलते बिप्र सेंग्र हे गुवियायफ। धुत लावेग्य वत्तेयान ज्ञान सव जानन लायक ॥ गाय सब छुणि सयु्ति के जातक सब विधि कयो। उनसे छह सार य पुयठ गाए इंच गय सुपति दियो 18 १ चायक्ष थी जे। कम पपदे ्प पूछि दिवावत । हज इन्ह वर ना ६१ विगय छाए सोडेज गावय गादतव सोद्ेय सुनय भ्प हृप्ति द्वार उसवद। पठ शरण पणिमरल चाट इज नेहि पहरुव १ दिीदा गये रु रय सजप ह ६ छाडिे छत्त। पुमि दु7517 | एहं रो साणगा एव दाएई घल ॥ ८ ॥ ए॥ मगर नर साई बर्र दा रिउ प्रसतच सवि। प्रति सह पेन नो झा भाइडक बरो रति॥ सरो चोर पयसुक्त ५ उप गंदे बस। छाजुप जुग दवोर रहेड भरि हा दिव्या दिशा कियि उद्च गए सो सामित्रि




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