श्री महावीर स्वामी चरित्र | Shrimahavir Swami-charitra
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about दीपचंद्र वर्णी - Deepchandra Varni
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
निशा को भगा कर ज्ञान ज्योति और धर्म तेज का प्रकाश
करना आरम्भ कर दियां | “पूत के लक्षण पालने में दीखते हैं”
यह् वाति वीर् प्रभु के चरित्र से चरितार्थ होगई । कारण छि
आप में जन्सते दे! अपूर्व तेज, बल, शोय , वीरता, निर्भीऋता
ओर छुशाप्र बुद्धि आदि अनेक शुख प्रगट होने लगे थे ।
प्रथम ही जब आप का जन्म हुआ तो सुर, नर, खगेन्द्रों
के आसन डोल उठे, जिस से उन्होंने जाना, कि बीर प्रथु का
जन्म कुण्ड नगरी सें नाथवंशमंडन महाराज सिद्धार्थ के
यहाँ हुआ है, बस वे अपने अपने आसनों से उठे और उस
दिशा में साथ पग ন্নঘা कर परोक्त नमस्फ़ार किया, पश्चात्
सभी दल बल्ल सहित प्रभु के जन्भ मशरीरसव के लिए चल पड़े ।
सौधर्म इन्द्र भौ विभूति सहित पेरापति ( गजेन्द्र ) पर चढ़
कर शची ( इन्द्राणी ) सहितं स्प्मं॑से चल दिया, प्रथम दही
आकर नगर की प्रदक्तिणा दी धौर पश्चात् महाराज के महत्व
सें श्राया, शची गर्भ गृह में गई और माता जी को मायामयी
निद्रा कराके तथा मायामयी वालक शय्या पर रख कर प्रभुका
उठा लाद गौर इन्द्र को सौप दिया, इन्द्र ने नमस्कार करके
प्रभु को गोद में लिया, और अठप्त हो सहस्रन नेत्रों से प्रभु का
रूप देखने लगा, पर तृप्त न हुआ, उस समय उसकी दृष्टि
सर्च प्रथम प्रश्च के एक सौ आठ लक्षणों तथा नवसौ
व्य'जनों में से सिंह लक्षण पर पड़ी और इस लिए उसने प्रश्न
का सिंद लक्षण और वीर नाम प्रगट क्रिया । पश्चांत् उत्सव
सहित सुमेरु गिरि पर्वत के पाण्डुक बन में ले गया और उस
बन में स्थित चार अकृतिम जिन चैत्यालय होने से प्रथम दी
उनकी तीन प्रदक्षिणा दी, पश्चात्. उस चन में सिते अनादि
User Reviews
No Reviews | Add Yours...