हिंदी शब्दसागर अर्थात हिंदी भाषा का एक बृहत् कोश (दूसरा भाग) | Hindi Shabdsagar Arthat Hindi Bhasha Ka Ek Brihat Kosh (Dusra Bhaag)

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Hindi Shabdsagar Arthat Hindi  Bhasha Ka Ek Brihat Kosh (Dusra Bhaag) by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चकचकाना ९१७ আনা क क मि ৪০১৯৪ चकचक्ाना-क्रं० अ० [ देश ] (१) प्रानी, জুল, হল হা গীত | चकताई-ठंज्ञा पुं० दे० “चकत्ता” । किसी द्वव पदार्थ का सृच्म कणों के रूप में किसी वस्तु ढे | चकत पुं [ दिं० चकत ] चक्राटा | दांत की पकड़ | भीतर से निकलना | रस रस कर ऊपर आना ভ০-_ন্া | मुहा०-चकत मारना = दात से मांस आदि নীল জলা | বাতা जहाँ बेत लगा है, खून चकचका आया है । (२) भींग मारना | दतिं से काट खाना । লালা । | ३०---चक चकित|चित्त चरचीन छुभि चकचकाइ | चकती-संज्ञा छी० [ सं० चक्रत्‌ ] (१) किसी चइर के रूप की সী বত যা! वस्तु का छोटा गोल इुकढ़ा | चमड़े, कपड़े आदि में से काटा चकचकी-तंज्ञा स्नी० [ अनु० ] करताल नाम का वाजा । हुआ गोल वा चौकोर छोटा इुकढ़ा । पट्टी | गोल वा चैकार चकचानाश्ञय-क्रि० [ देश० ] चेंघियाना। चकाचांध लगना । धज्णी 1 3०--इस पुराने कपड़े में से एक चक्ती निकाल लो। उ०-- तो पद्‌ चमक चकचाने चंद्रचूड़ चप चितवत एकटक (२) किसी कपड़े, चसड़े, बरतन इत्यादि के फटे वा फूटे हुए অক উম गई है ।--चरण । स्थान पर दूसरे कपड़े, चमड़े वा धातु ( चहर ) इत्यादि का चकला पु [ सं चक ~+ 1६० चाल | चक्कर । श्रमण । टेका वा लगा हुआ कड़ा | किसी वस्तु के फटे ष्टे स्थान ५५८ ৬. ४ 8১ ৯২ क ह फेरा । ॐ०--माया मत ॒चक्रचाल करि चंचल कीये जीव । के वद्‌ करने चा मदने के लिये लगी हु टी वा धल्नी। माया माते मद्‌ पिया दादू विसर पीव ।--दादू । (५ 1 টানা छ ¢ [व = ~~ चकचाव1#-संज्ञा पु० [ देश० ] चकार्चोाघध । ३० --गोकुल के चप हे এ. ৪1 4 রি मुहा०-- वादल में चकती लगाना ₹স্সনইানী वात करने का से चकचाव गो चार ले चोकि अयान विसासी । | পা রর र प्रयल्त करना | असंमव कार्य्य करने का आयेजन करना | बहुत चकन्चून-वि° [ सं० चक्र + चूर्ण ] चूर किया हुआ | पिसा हुआ । ती म वरस चकनाचूर । उ०--पान, सुपारी लैर कर मिले करे चकचून । (ই) সপ की नाल दर शादी दम । तब लगि रंग न राचै जव लगि होय न चून (--जायस्ती । क + किक प अंक हे এ নিও 3524 8 সা বারন चकतचा-संज्ञा पुं० [ सं० चक्र + वत्त ] (१) शरीर के ऊपर बड़ा धिसा चरी दे° शचकार्चीध । = . गेल दाग । चमड़े पर पढ़ा গা পা লা জা । ( रक्त- चकचैंधिना-कि० अ० [सिं० चछुप्‌ + अप आखि का व्ये श्रधिक विकार के कारण चमड़े के ऊपर लाल, नीले वा काले चकत्ते अकाश के सामने ठहर न सकना | ्रत्यंत प्रखर प्रकाश के पड़ जाते हैं ।) (२) खुजलाने श्रादि के कारण चमड़े के सामने दृष्टि स्थिर न रहना । रश्राख तिलमिलाना । चकार्चैध ऊपर येषद से घेरे के बीच पड़ी हुई चिपटी और बरावर होना । सूजन जे उभड्ठी हुईं चकती फी तरद दिद देती है क्वि० स० आँख में चमक उत्पन्न करना । श्राखों में तिलमिला- ददोरा। (३) दतिंसे काटे का चहु! दाति चुभनेका हट वदा करना । चकार्चाधी उत्पन्न करना । ३०--(क) श्रध निशान । छथ भवर ते गिरि पर मानो परत वत्र के तीर । चमकि | [छ्िल प्र०--डालना | चमकि चपला चक्चाधति श्याम কল মন धीर ।--सूर 1 | युद्धा ०--चक्ा भरना = दति) से काना । दर्तिं से मस निकाल সস 5: (ख) चकति सी चितवै वित सें चित सोत र महं लेना } चत्ता मारना = दतिं ঈ काटना | जागत है 1--केशव । संज्ञ पुं [ च चगृताईं ] (५) मेगल चा ततार আলীর যা चकरचेोधी-व्ञा स्री० दे° “चक्र्चधः । ताई खा जिसके चंश में बायर अकवर গাহি भारतवर्ष के चकचेंहर#-संज्ञा सी० [ देश० ] घकार्चाघ । मेगल बादशाह थे। उ०--मोदी भई चंदी चिनु चारी रे चकचाहना#-क्रि० स+ [ देश० ] चाह से देखना | श्राशा लगाए चव्य सीस, खटी भई्दे संपति चफत्ता छे घरमे की 1-- टक चाच कर देखना । उ०--जनु चातक सुख चद सेवाती 1 मूपण । (२) चग॒ताई चंदा का पुरुष | ३०--मिलतदि हुसा राजा चकचाहतत तेहि भाती 1--जायसी । चफत्ता को निरखि.कीना सरजा सुरेस ज्यों दुचित् मजरात चकड़चा-संज्ा पुं> दे० “चकरवा? । के {--मूपर । चकडार-ंच्ा सरी [ द° ] (9) चकर की डरी । चदं नामक | चकदार-े्ा पुं० [ 6० चक + फा० दार (एय५) ) बंद ओ दूसरे सिलेने में लपेटा हुआ सूत | ३०--(क) सेलत ्रवध सरि की जमीन पर ङ्श बनवाबें श्रार इस ज़मीन का लगान ই गोली भँवरा चकडोरि मूरति मधुर बसे तुलसी के हिय रे। | खकनाइ-हि গস [০ আধ 5 आंत] (१) चकित हिना | सोचप -उकसी । (ख) दे मैया भंवरा चकोरी। जाइ लेहु भारे होना । অ্কঘকানা | বিলিন টানা । ও০--() শি पर राया काल्दि मोल सै रासे श्री ।-सृर। (२) चलद चितेरी र चकिमी जिते উ যু হী तस्वीर सी के फरवे में वह ठोरी जो चक्र था नचनी में लगी हुई नीचे --वेनी ध्रवीन । (गय) यदी धनि धनि युग वद दरि की सति देमि चङि रदी 1--रघुरात 1 (२) पडिना लयक्ती है श्रर जिसमे येसर बेधी रहती है ।




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