केशव कौमुदी भाग 1 | Keshav Koumudi Bhag-1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
377
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चहिला प्रकाश
बड़े ऋषि और बडे-वड़े तपस्वी लोग कह-कह कर थक गए, पर किसो ने पूरी
न कह पाई | मूतकाल के संसारी लोग कह गए, वर्तमान काल के कह रहे हैं
प्रौर मविष्य काल के कहँगे तो मी ( केझौदास कहते है ) पूरी प्रशंसा न हुई
গীব न हो सकेगी (लौकिक वर भ्रस्य लोगों की तो बात ही क्या, स्वयं उनके
सम्बन्धी जो उनकी उदारता भली माति जान सक्ते ह) परति ( ब्रह्मा ) चार
मुख से, पुत्र (महादेव) पाँच मुख से श्रौर नाती (पढानन) छः मुख से वर्णन
करते है तो भी कुछ न कुछ नवीन उदारता उनको कहने के लिए मिलती
ही जाती है--प्र्थात् वे भी पूर्णतया नहीं कह सकते, तव हम मनुष्यों की वया
सठि है कि उनकी उदारता का कुछ भी वर्णन कर सके ।
अलंकार--सम्बन्धातिशयोक्ति ।
श्रीराम-बंदना
दंडक--ध्रृरण पुराण श्र पुदप पुराण परिप्ुरण,
अतावे ন্ আবে और उक्ति को ।
दरशन देत जिन्हें दरझ्नन समुझे न,
नेति-नति कहे वेद छांड़ि भ्रान युवत को 1
जानि यह् केशोदास अनुदिन रास राम,
বরন रहत न डरत पुनदकति को।
रूप देहि श्रणिमाहि गण देहि भरिमाहि,
भवित देहि महिमाहि नाम देहि मुक्ति को ॥३॥
इाष्दार्य--ूरण सम्पूणं, स्व । परिपूरण=सव भकार पूर्णं 1 उक्ति
वात, कयन । दरयन=यद् स्तर । श्रनुदिनन्=रोज-रोज, नित्य । पुनषक्ति=
दोबारा कहने का दोष। श्रणिमा>-वह सिद्धि जिससे छोटे से छोटा रूप घारण
किया जा सकता है। महिमा--वह सिद्धि जिससे वडा रूप धर सकते हैं ।
मुक्ति--जीवन-मरण से छुटकारा ।
भावायं--सद पुराण (ग्रन्थ ) ओर पुराने लोग जिसे श्रोर कथत छोड़
सब प्रकार पूर्ण बतलाते हैँ (प्रोर) जिसको पट्य्मास्त्र ( के समझाने वाले
नानी) समन्त मही सक्ते वे ही राम (पने प्रेमी भक्तो को) प्रत्यक दर्शन
देते हूँ । भर्यात् घास््त्रद्माती जिसके निर्युण रूप को समझ नहीं सकते वही
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