राम दुलारी | Ram-dulari

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Ram-dulari by बाबू सूरजभानुजी वकील - Babu Surajbhanu jee Vakil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) खी-ऐसा तो होने ही छगा है| मई--तो फिर यह भी करने रगो किः जिस प्रकार मंदं एक स्त्री के जीतेजी दूसरी तीसरी ब्याह छाता है इसी प्रकार स्त्रियां मी एक साथ कदे फट पति कर लिषा करं । खी- नी, मर्दौ की तरह स्त्रियां कुशीली नहीं हैं जो ऐसा करने खगे, किन्तु बह तो यदह ही कहती दें कि जिस प्रकार स्त्री एक पत्ति के जीते जी दूसरा पति नहीं कर सकती है इसी प्रकार मदे भी एक ख्री के जीतेजी दूसरी स्त्री न फर सर्के | मर्द--क्या कहने हें तुम्हारे, आज तो तुमने बड़े २ पंडितों को भी मात देदी | सत्री--यह. मज़ाक की बातें तो होली, अब तुम मेरी श्रात पर ध्यान दो ओर जिस तरह भी होसके दुलारी की सभाई वां मत होनेदो | मद्‌- अच्छा तो असली बाल बता, तुझे क्‍यों इतनी ग दो रही है इस बात की । सत्री-हमारी कमला बहुत खयाल कर रही है इस बात का, चह तो यहां तक कद्दती द्वे कि जो वह ब्याद होगया तो न तो में दुलारी को अपने यहां बुलाऊं और न उसके यहां जाऊं। मर्द-त्तो कुछ सबब भी इस वात का। स्रो--सबब क्या होता, नाश गया डोरे डालता फिरे है भले घरों की बहू बेटियों पर, इनके यहां भी तो अपनी कुटनियां भेज्ञी थीं, पर इसने तो घक्के देकर निकालदी।




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