पालिकोससंग्रहो | Palikosasangraho

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Palikosasangraho by भागचन्द्र जैन भास्कर - Bhagchandra Jain Bhaskar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ १५ ) कहलाता था ( ४०३-४ ) | अमरकोष मे यह विवेचन कुछ मिन्‍्नता लिये हुये है (९२१० २-४) | शिल्पी पांच प्रकार क होते है~-तक्षक, तन्तुवाय, रजक, नहापित ओर चर्मकार । तन्तुवाय, मालाकार, कुम्भकार, सुविकः चम॑कार, कल्पक, चित्रकारः पुष्पवजज॑क, नरकार, चुन्दकार, कर्मार, रजक, अलादारक, वीणावादक, धानुष्क, वरणीबादक, हस्तवाद्ययादक, पिठविक्र ता, मद्यविक्र ता, इन्द्रहालिक, शौकरिक, सरगयाकारी, वागुरिक, भारवाही, मृत्य, दास; कीवदास, नीच, चाण्डा, किगत, स्लेच्छुजाति, मृगव्याध, आदि को शूद्रव्गं मै समाहित किया गया है (५०३-४१८) । अमरकोष मे भी लगभग यही मिलता है (२ १० ५-४६) । आभरण के प्रसंग मे किरीटठ, मुकुट्स्थ प्रधानमणि, उष्णीष, कुण्डल, कर्णामरण कटालड्लार, मुक्‍्तामाठा, बलय, करभृषण, “किड्लिणी, अद्भुलीयक, मुद्रिका, मेखला, केयूर, नू पुर और मुस्यफुल्ल का नाम मिलता है। वरस मे परिधान, उत्तरीय, कज्चुक, वस्त्रान्त, शिरसत्राण, चीवर, कार्पासबस्त्र, वल्कल- वस्त, कौशेयबस्त्र जोर ऊर्णायुवस्त्र का नाम आया है। बस्थ्रोर्पान्‍्तस्थान में फलः त्वक, क्रिमि भौर लोम का उल्केख है | गन्ध द्व्यों में चन्दन, काव्ठा- नुसारी, अगर, कालागरू, कस्नृरी कुट, लबड्र, कुङ्कुम यक्षधूप, कक्कोलफल, जानिफल, कप्रर, लामा, ता्पिण तैर, अञ्चनः, वासचूर्ण, विलेपन और माला का नाम मिलता है। रोगों में यक्ष्मा, सासा, श्ल्षेष्म, त्रण, विस्फोट, पूय, रक्तातिसार, अपस्मार, पांदस्फोट, कोशबृद्धि, श्लीपद, कडु, विकच, शोफ, अ, वमन दाह, जतिसार, मेधा, जर, क्वास, श्वास, भगन्दर, कुष्ट ओर मलं का उल्लेग्व है ( २८८२-३३० ) | ४. भूगोल अमिधानप्पदीपिका में चार महाद्वीप गिनाये गये है--पू्ं विदेहः अपरगोयान, जम्बूद्वीप और उत्तरकुरु ( १८३ )। जैनागर्मो मे मनुष्य क्षेत्र के अन्तगत कुछ तीन द्वीपों का वर्णन मिलता है- जम्बूद्वीप, घातकीखण्ड और पुष्कराड्ड द्वीप' | महाभारत मे तेरह द्वीपों का उल्लेख है” और विष्यु- पुराण में सात द्वीपों का नाम आता है--जम्बूद्वीप, प्लक्षद्वीप, शाल्मलद्बीप, कुणद्वीप, क्रौद्यद्वीप, शाकद्वीप और पुस्करद्वीप । अमिधानप्यदीपिका मै २१ देशो कै भी नाम मरत है कुर, शाक्य, कोशल, मशघ, शिवि, कलिङ्ग, अवन्ति, पचा, वस्जि, गधार, चतय, बग, विदेह, कम्बोज, मद्र मग्ग, अङ्ग, सीहट, कश्मीर, काली आओौर पाण्डव १. तत्त्वाथंसूत्र, तृतीय अध्याय २ महामारत, ७४ १६




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