भारतीय संस्क्रति | Bharatiya Sanskriti

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Bharatiya Sanskriti by प्रो. शिवदत्त ज्ञानी - Pro. Shivdatt Gyani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(० भारतीय संस्कृति या छोटी हिमालय-श्यज्ञला ओर बाहरी या उपत्यका-श्यज्ञला कहते हं, ओर जिन्हें असली हिमालय की निचली सीडियाँ कहना चाहिए । भीतरी शड्टला का नमूना काश्मीर को पीरपचचाल-श्यड्नला, कांगड़ा-कुल्लू की धोलाधार आदि हं । उपत्यका-श्ज्लला का अच्छा नमूना शिवालक पहाड़ियाँ हं । यह हिमालय कम-से-कम १४०० मील लम्बाई में है ओर लगभग १६००० फुट ऊँचाई में है । इसकी चोटियाँ २९००० से २६००० फुट ऊँची हं । इस पर्वतमाला में से कहीं-कहीं उत्तर की ओर जाने का मार्ग भी हैं, जेंस गिलगिट से पामीर, लेह से तिब्बत आदि जाने का रास्ता । भारतवपं के परिचमोत्तर मं भी हिन्दुकुश, सुलेमान आदि पवंत- श्रेणियां हे ¦ इन्हीं में खबर, कुर॑ंम, बोलन आदि प्रसिद्ध घाटियाँ हें, जिनके द्वारा कितने ही विदेशी व आक्रमणकारी भारत में आकर बसे थे व उन्होंने यहाँ के राजनीतिक तथा सामाजिक जीब्नन में उथल-पुथल मचाई थी । कहा जाता है क्ि ये घाटियाँ पहले नदियों थीं । पूर्व की ओर भी भारत घने जंगलों व नांगा, पतकुई, आराकान आदि पव॑तों के कारण दुर्गंम है, अतएवं सुरक्षित ह। साधारण आवा- गमन के लिए इनमें मार्ग अवश्य हैं, किन्तु इनसे बड़ी-बड़ी सेनाएँ नहीं आ सकतीं । यही कारण है कि इस दिशा से भारत पर कोई भी आक्र- मण नहीं हुश्रा। दक्षिण में पूर्व व पश्चिम की ओर मझुकता हुआ समुद्र हैं। ठीक दक्षिण में हिन्द महासागर लहराता है, तथा पूर्व व पश्चिम में क्रमशः बंगाल की खाड़ी व अरब का समुद्र है। इस प्रकार दक्षिण भारत भौगो- लिक दृष्टि से प्रायःद्वीप कहा जा सकता है । यह भाग भी प्राचीन काल में विदेशिय/ के आक्रमणों से सुरक्षित ही था। किन्तु व्यापार आदि के लिए विदेशियों का नोका द्वारा आना-जाना प्राचीन काल से ही जारी था। समुद्र के किनारे रहने वाले भारतीय अत्यन्त ही प्राचीन काल, से दूर-दूर के देशों से व्यापार करते थे ।




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